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सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत, तानाशाह शासकों की हार: सोनिया गांधी

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के फैसले को किसानों की जीत और ‘तानाशाह शासकों की हार’ करार देते हुए शुक्रवार को कहा कि उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार इससे भविष्य के लिए कुछ सबक लेगी।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री को किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना चाहिए और भविष्य में कृषि कानूनों जैसा कोई बड़ा कदम उठाने से पहले राज्य सरकारों, विपक्षी दलों और दूसरे संबंधित पक्षों से बातचीत करनी चाहिए।

सोनिया गांधी ने एक बयान में कहा, ”लगभग 12 महीने के गांधीवादी आंदोलन के बाद आज देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं-किसानों-खेत मजदूरों के संघर्ष व इच्छाशक्ति की जीत हुई। आज उन 700 से अधिक किसान परिवारों की कुर्बानी रंग लाई, जिनके परिवारजनों ने न्याय के इस संघर्ष में अपनी जान न्योछावर की। आज सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत हुई।”

उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ”आज सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बुना किसान-मजदूर विरोधी षड्यंत्र भी हारा और तानाशाह शासकों का अहंकार भी। आज रोजी-रोटी और किसानी पर हमला करने की साजिश भी हारी। आज खेती-विरोधी तीनों काले कानून हारे और अन्नदाता की जीत हुई।” कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया, ”भाजपा सरकार ने लगातार खेती पर अलग-अलग तरीके से हमला बोला है।

चाहे भाजपा सरकार बनते ही किसान को दिए जाने वाले बोनस को बंद करने की बात हो, या फिर किसान की जमीन के उचित मुआवज़े पर कानून को अध्यादेश लाकर समाप्त करने का षड्यंत्र हो। चाहे किसान को लागत के अतिरिक्त 50 प्रतिशत मुनाफा देने से इनकार कर देना हो, या फिर डीज़ल व कृषि उत्पाद की लागतों में भारी भरकम वृद्धि हो, या फिर तीन खेती विरोधी काले कानूनों का हमला हो।”

उन्होंने कहा, ”आज जब किसान की औसत आय 27 रुपये प्रतिदिन रह गई हो और देश के किसान पर औसत कर्ज 74,000 रुपये हो, तो सरकार व हर व्यक्ति को दोबारा सोचने की जरूरत है कि खेती किस प्रकार से सही मायनों में मुनाफे का सौदा बने। किसान को उसकी फसल की सही कीमत यानी एसएमपी कैसे मिले।”

सोनिया गांधी के मुताबिक, ”किसान व खेत मजदूर को यातना नहीं, याचना भी नहीं, न्याय और अधिकार चाहिये। यह हम सबका कर्तव्य भी है और संवैधानिक जिम्मेदारी भी। प्रजातंत्र में कोई भी निर्णय सबसे चर्चा कर, सभी प्रभावित लोगों की सहमति और विपक्ष के साथ राय मशविरे के बाद ही लिया जाना चाहिए।

उम्मीद है कि मोदी सरकार ने कम से कम भविष्य के लिए कुछ सीख ली होगी।” उन्होंने कहा, ”मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री व भाजपा सरकार अपना राजहठ व अहंकार छोड़कर किसान कल्याण की नीतियों को लागू करने की ओर ध्यान देंगे, एमएसपी सुनिश्चित करेंगे व भविष्य में ऐसा कोई कदम उठाने से पहले राज्य सरकारों, किसान संगठनों और विपक्षी दलों की सहमति बनाई जाएगी।”

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