संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार और व्रत भगवान गणेश को खुश करने के लिए मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी हिंदू संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का खास महत्व होता है। इस बार 24 जनवरी को गुरूवार के दिन संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाएगा। वैसे तो हर महीने कोई ना कोई व्रत होता है और हर व्रत का अपना एक अलग महत्व होता है। इन्हीं पर्वों में खास है संकष्टी चतुर्थी का पर्व या व्रत जिसे सकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ और तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी में भगवान गणेश की पूजा करने और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही महिलाएं अपना व्रत पूरा करती हैं। आपको बता दें हिन्दू कैलेंडर में हर महीने दो बार चतुर्थी आती है अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तो वही पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इनमें सबसे खास होती है माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी जिसका शास्त्रों में बेहद ही खास महत्व माना जाता है। इस बार माघ महीने की सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी 24 जनवरी को है। ये पर्व पश्चिमी और दक्षिणी भारत में खासतौर से काफी प्रसिद्ध है। इसलिए आज हम आपको संकष्टी चतुर्थी व्रत की तिथि, सकट चौथ का महत्व, विधि, कथा और चंद्रोदय का सही समय बता रहे हैं जिससे आप इस दिन व्रत और पूजा करके भगवान गणेश की कृपा पा सकें और अपने जीवन के विघ्नों को दूर कर सकें।
संकष्टी चतुर्थी के गुरूवार पर होने से बढ़ गया है महत्व
इस बार की माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी गुरूवार को आ रही है जिससे इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, गुरूवार के दिन सकट चौथ का पड़ना और भी शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि के साथ साथ अपने बच्चों की खुशहाली की कामना के लिए भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती हैं, ताकि उन पर किसी तरह का कोई कष्ट न आए।संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय का समय
संकष्टी चतुर्थी यानि सकट चौथ पर चंद्रोदय का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 20 मिनट पर है। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही ये व्रत पूरा करके, प्रसाद ग्रहण करें और उसके बाद ही खाना खाकर व्रत खोलें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा
महाराज हरिश्चंद्र के काल में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। जिसके बाद कुम्हार ने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि तुम्हे बलि देनी होगी तब उसने तपस्वी ऋषि जिनकी मौत हो चुकी थी, उनके बेटे की बलि दे दी। उस दिन सकट चौथ यानि संकष्टी चतुर्थी थी। जिस बच्चे की बलि दी गई उसकी मां ने उस दिन व्रत रखा था। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वो बच्चा मरा नहीं था बल्कि खेल रहा था। डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब से राजा ने सकट चौथ यानि संकष्टी चतुर्थी की महिमा को माना और पूरे शहर में पूजा का आदेश दिया।
संकष्टी चतुर्थी व्रत और पूजा विधि
-सुबह सवेरे नहा धोकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर गणेश जी की पूजा करें।
– गणेश जी को दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित मोदक व पंचामृत चढ़ाएं।
-सकट चौथ के दिन गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
-संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनें और गणपति जी की आरती करें।
-शाम को चंद्रोदय के बाद चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलें।
संकष्टी चतुर्थी 2019 : जानिये सकट चौथ का महत्व, विधि, कथा और चंद्रोदय का सही समय
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