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वैक्सीन वितरण का संकट का जम्मेदार कौन?: प्रियंका गांधी

राहुल यादव, लखनऊ। मंगलवार को  प्रियंका गांधी की फेसबुक पोस्ट की और पूछा वैक्सीन वितरण का संकट का जम्मेदार कौन?उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि,कुछ दिनों पहले मैंने वैक्सीन नीति के बारे में चर्चा की थी। आज मैं वैक्सीन नीति के दूसरे, सबसे महत्वपूर्ण अंग के बारे में आपसे चर्चा करना चाहती हूँ- वैक्सीनों का वितरण।
विशेषज्ञों का मानना है कि ज़्यादा से ज़्यादा और जल्द वैक्सीनेशन कोरोना को हराने के लिए ज़रूरी है। जिन देशों ने अपने यहाँ ज़्यादा वैक्सीन लगवाई, उनमें कोरोना की दूसरी लहर का कम प्रभाव पड़ा। हमारे देश में दूसरी लहर, पहली लहर से 320% ज़्यादा भयानक साबित हुई। यह पूरे विश्व का रिकॉर्ड है।
वैक्सीन वितरण का संकट, जिम्मेदार कौन? 
हालाँकि भारत के पास स्मालपॉक्स, पोलियो की वैक्सीन घर-घर पहुंचाने का अनुभव है, लेकिन मोदी सरकार की दिशाहीनता ने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण दोनों को चौपट कर दिया है। 
भारत की कुल आबादी के मात्र 12% को अभी तक पहली डोज़ मिली है और मात्र 3.4% आबादी पूरी तरह से वैक्सिनेटेड हो पाई है। 15 अगस्त 2020 के भाषण में मोदीजी ने देश के हरएक नागरिक को वैक्सिनेट करने की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा था कि “पूरा खाका तैयार है।“
लेकिन अप्रैल 2021 में, दूसरी लहर की तबाही के दौरान, मोदीजी ने सबको वैक्सीन देने की ज़िम्मेदारी से अपने हाथ खींचते हुए, इसका आधा भार राज्य सरकारों पर डाल दिया।
मोदी सरकार ने 1 मई तक मोदी सरकार ने मात्र 34 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया था तो बाकी वैक्सीन आएँगी कहाँ से? 
देश में वैक्सीन अभाव के चलते कई राज्य सरकारें ग्लोबल टेंडर निकालने को मजबूर हुईं। मगर उन्हें खास सफलता नहीं मिली। Pfizer, Moderna जैसी कम्पनियों ने प्रदेश सरकारों से डील करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा वे केवल केंद्र सरकार के साथ वैक्सीन डील करेंगे। 
आज वैक्सीन लगाने वाले काफी केन्द्रों पर ताले लटके हैं एवं 18-45 आयुवर्ग की आबादी को वैक्सीन लगाने का काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। मोदी सरकार की फेल वैक्सीन नीति के चलते अलग-अलग दाम पर वैक्सीन मिल रही है। जो वैक्सीन केंद्र सरकार को 150रू में मिल रही है, वही राज्य सरकारों को 400रू में और निजी अस्पतालों को 600रू में। वैक्सीन तो अंततः देशवासियों को ही लगेगी तो यह भेदभाव क्यों? 
भारत की 60% आबादी के पास इंटर्नेट नहीं है और कईयों के पास आधार या पैन कॉर्ड भी नहीं होता। ऐप आधारित वैक्सीनेशन प्रणाली के चलते भारत की एक बड़ी जनसँख्या वैक्सीन लेने से वंचित है। सरकार ने इस बारे में अभी तक प्रयास शायद इसलिए नहीं किया क्योंकि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया मुश्किल होने से कम समय में ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगवाने का बोझ हल्का हो सकता है।
अगर हम दिसम्बर 2021 तक हर हिंदुस्तानी को वैक्सिनेट करना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन 70-80 लाख लोगों को वैक्सीन लगानी पड़ेगी। लेकिन मई महीने में औसतन प्रतिदिन 19 लाख डोज ही लगी हैं। 
अब जनता पूछ रही है-
वैक्सीन नीति को गर्त में धकेलने के बाद मोदी सरकार ने “सबको वैक्सीन देने” की जिम्मेदारी से हाथ क्यों खींच लिया? आज क्यों ऐसी नौबत आई कि देश के अलग-अलग राज्यों को वैक्सीन के ग्लोबल टेंडर डालकर आपस में ही प्रतिदंद्विता करनी पड़ रही है? 
एक वैक्सीन, एक देश मगर अलग-अलग दाम क्यों हैं?
न पर्याप्त वैक्सीन का प्रबंध है, न तेजी से वैक्सीन लगवाने की योजना है तो सरकार किस मुँह से कह रही है कि इस साल के अंत तक हरएक हिंदुस्तानी को वैक्सीन मिल चुकी होगी? अगली लहर से देशवासियों को कौन बचाएगा? 
इंटर्नेट एवं डिजिटल साक्षरता से वंचित आबादी के लिए केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन की कोई योजना क्यों नहीं बनाई? क्या मोदी सरकार के लिए उनकी जानें क़ीमती नहीं हैं?

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