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लोकसभा ने ‘वेतन एवं सेवा शर्त’ संशोधन विधेयक को दी मंजूरी

नई दिल्ली। लोकसभा ने बुधवार को उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन विधेयक 2021 को मंजूरी दे दी। विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पेंशन की अतिरिक्त मात्रा या परिवार पेंशन के लिये कोई हकदारी सदैव उस माह की पहली तारीख से होगी जब पेंशन भोगी या कुटुम्ब पेंशनभोगी निर्दिष्ट आयु पूरी कर लेता है।

लोकसभा में विधि एवं न्याय मंत्री किरण रिजीजू ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कानून में छोटा संशोधन के लिये विधेयक लाया गया है और इस पर कोई विवाद नहीं करके सर्व सम्मति से पारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम न्यायाधीश के वेतन, पेंशन या अन्य सुविधाओं को कम नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ विसंगतियों को दूर कर रहे हैं।

रिजीजू ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों में 90 प्रतिशत मामले निचली अदालतों में लंबित हैं और इसे न्यायालय सहित सभी पक्षों को दूर करने की दिशा में काम करना है। विधि मंत्री ने कहा कि सरकार न्यायालयों के कामकाज या न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करती है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की एक प्रक्रिया होती है और इसमें गति लाने के लिये हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन विधेयक 2021 को ध्वनिमति से मंजूरी दे दी। वहीं, रिजीजू ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया शीर्ष अदालत से शुरू होती है, ऐसे में प्रक्रिया का पालन करना होता है।

उन्होंने कहा कि 1993 तक जजों की नियुक्ति की एक प्रक्रिया थी और इसके तहत जितने अच्छे तरीके से नियुक्ति हुई, यह स्पष्ट है। बाद में कोलेजियम की व्यवस्था लागू हुई तथा प्रक्रिया ज्ञापन बनाया गया जो आजतक चला आ रहा है, ऐसे में हमें संवैधानिक प्रक्रिया का भी ध्यान रखना है।

विधि मंत्री ने कहा कि संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में स्पष्ट प्रावधान है। इनकी नियुक्ति के संबंध में ‘परामर्श’ को समवर्ती का रूप दे दिया गया। उन्होंने कहा कि हाल ही में उच्च न्यायालय को सरकार की ओर से पत्र लिखा गया कि जब आप न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये नाम भेजते हैं तब इसमें महिलाओं, कमजोर वर्ग के प्रतिनिधित्व का ध्यान रखें ताकि सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिले क्योंकि हम सीधा ऐसे नहीं कर सकते हैं।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों का मुद्दा बहुत बड़ा है, भारत सरकार को इस दिशा में सक्रियता से काम करना है और न्यायपालिका को भी और कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र के बाद वह राज्यों के विधि मंत्रियों की बैठक बुलायेंगे।

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय (वेतन एवं सेवा शर्त) अधिनियम 2009 की 17ख एवं 16ख में क्रमश: अंत:स्थापित किया गया था जिसमें प्रत्येक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उनकी मृत्यु के पश्चात उसका कुटुम्ब उसमें निर्दिष्ट मान के अनुरूप पेंशन या कुटुम्ब पेंशन की अतिरिक्त मात्रा का हकदार होगा। इसी के अनुसार, उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की पेंशन की अतिरिक्त मात्रा को यथास्थिति 80 वर्ष, 85 वर्ष 90 वर्ष और 100 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर मंजूर किया जा रहा है।

इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेन्द्र दत्त ज्ञानी द्वारा दायर रिट याचिका में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 15 मार्च 2018 के अपने आदेश में कहा कि पूर्वोत्तर उच्च न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम की धारा 17ख के अनुसार पहली श्रेणी में अतिरिक्त पेंशन की मात्रा का फायदा किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उनकी अस्सी वर्ष की आयु पूरी होने के पहले दिन से उपलब्ध होगा । इसके बाद, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी भारत के उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय सेवानिवृत्त न्यायाधीश संघ द्वारा दायर रिट याचिका में 3 दिसंबर 2020 को दिये आदेश में इस संबंध में उल्लेख किया।

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पूर्वोत्तर अधिनियम की धारा 17ख एवं 16ख को अंत:स्थापित करने का विधायी आशय सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उस मास की पहली तारीख से पेंशन की अतिरिक्त मात्रा का फायदा देना था जिसको वह मान के पहले स्तम्भ में निर्दिष्ट आयु पूरी कर लेता है।

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