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लोकप्रहरी एनजीओ की याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने केन्द्र से पूँछा कि पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस क्यों ?

नई दिल्ली: पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा सवाल कि 12 साल से आप जो स्वतंत्र मैकेनिज्‍म बना रहे है उसका क्या हुआ ? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजीवन पेंशन और अलाउंस को लेकर 2006 से आप बना रहे है अब तक आपने उसमें क्या किया ? केंद्र सरकार ने कहा कि स्वतंत्र मैकेनिज्‍म अभी विचार में है और इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा.

केंद्र सरकार ने कहा कि आजीवन पेंशन और अलाउंस को लेकर वो एक स्वतंत्र मैकेनिज्‍म बना रहे है, जो आजीवन पेंशन और अलाउंस को देखेगी. सुप्रीम कोर्ट अब 6 मार्च को इस मामले में सुनवाई करेगा.  इससे पहले पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को नोटिस जारी किया था.

सुप्रीम कोर्ट पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस देने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब मांगा था. हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हमने वह जमाना भी देखा है, जब लंबे समय तक सांसद के रूप में सेवा करने के बाद भी कई राजनेताओं की मौत गुरबत (गरीबी) में हुई है.

आपको बता दें कि लोकप्रहरी नामक एनजीओ ने याचिका दाखिल कर कहा है कि पूर्व सासंदों और विधायकों को आजीवन पेंशन दी जा रही है जबकि नियमों में यह शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर एक दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है तो वह ना केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है, उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है. साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा करने का हकदार हो जाता है, जबकि राज्य के गर्वनर को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती.

यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी के लिए मुफ्त यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता. चाहे वह आधिकारिक यात्रा पर ही क्यों ना जा रहे हों. ऐेसे में यह व्यवस्था आम लोगों के लिए बोझ है और यह व्यवस्था राजनीति को और भी लुभावना बना देती है. अगर असल में देखा जाए तो यह खर्च ऐेसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिए इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए.

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