पटना : राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को जमानत नहीं मिलने पर बिहार में महागठबंधन की राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा. एक ओर जहां एनडीए मजबूत स्थिति में खुद को महसूस कर रही है. वहीं, राजद भी जमानत नहीं मिलने पर जनता के बीच सहानुभूति वोट हासिल करने की कोशिश करेगा. आरक्षण के खेल में माहिर लालू के नहीं होने से राजद महागठबंधन में ही अलग-थलग पड़ गया है. लालू प्रसाद यादव के जेल से बाहर नहीं आने के कारण राजद भी आसन्न लोकसभा चुनाव में जनता से सहानुभूति जुटाने की भरपूर कोशिश करेगा. राजद नेताओं का मानना है कि लालू प्रसाद यादव को जमानत मिल जाती, तो महागठबंधन में सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति में काफी मदद मिलती. वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री और रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि कोई दो राय नहीं है कि लालू यादव को जमानत मिलती, तो महागठबंधन ज्यादा मजबूत होता.
लेकिन, कानून है और उनके अनुसार ही काम होता है. तेजस्वी प्रसाद अभी कम अनुभवी हैं. दूसरी पार्टियों में उनसे ज्यादा अनुभवी लोग हैं. महागठबंधन में शामिल दल लालू प्रसाद यादव के नाम पर जुड़े हैं. लालू यादव का बिहार में सबसे बड़ा जनाधार है. ऐसे में लालू यादव के नहीं होने पर नेतृत्व का संकट उत्पन्न होना लाजिमी है. राजद नेता तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने हाल ही में मीसा भारती के पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके हैं. तेज प्रताप चुनाव प्रचार बिगुल भी फूंक दिया है. पाटलिपुत्र सीट को लेकर भाई वीरेंद्र का बयान आने पर राजद में ही दरार उभर कर सामने आये. आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिये जाने के केंद्र सरकार के फैसले को लेकर भी महागठबंधन में ही दरार देखने को मिला. सवर्ण आरक्षण को कांग्रेस ने जहां अपना समर्थन दिया है,
वहीं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने भी समर्थन दिया है. हिंदुस्तानी अवाम पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने तो आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 15 फीसदी आरक्षण दिये जाने की वकालत कर दी है. जबकि, राजद महागठबंधन में ही अलग-थलग पड़ गया है. ऐसे में लालू यादव के जेल में रहने के कारण महागठबंधन के दलों में ही अलग-अलग राय बनने लगे हैं. राजद नेताओं ने भी स्वीकार किया है कि लालू प्रसाद यादव के जमानत नहीं मिलने से पार्टी मर्माहत है. ऐसे में कार्यकर्ता का मनोबल कमजोर हो सकता है. पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित रखना मुश्किल भरा काम है. वहीं, लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर नहीं आने पर एनडीए के नेता उत्साहित हैं. बिहार में लालू यादव के बाद अगर कोई चर्चित नेता है, तो वह हैं नीतीश कुमार. ऐसे में लालू यादव के नहीं रहने पर नीतीश कुमार ज्यादा प्रभावी होंगे और इसका फायदा एनडीए को मिलेगा.
सवर्णों को आरक्षण के मुद्दे पर जिस तरह से महागठबंधन में बिखराव देखने को मिला, कहा जा सकता है कि महागठबंधन को संभालना कम अनुभवी तेजस्वी यादव के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी चुनौती किसी मुद्दे पर महागठबंधन के नेताओं को एकमत कराने की होगी. इसके अलावा, महागठबंधन की बैठक में सीपीआई का शामिल नहीं होना और महागठबंधन के राजभवन मार्च में जीतनराम मांझी का नहीं आना भी कई सवालों को जन्म दे रहे हैं. बिहार में महागठबंधन के सीटों फैसला राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की सहमति पर होगा. महागठबंधन के कई नेता बारी-बारी झारखंड में लालू प्रसाद यादव के समक्ष अपनी हाजिरी लगा चुके हैं. इसके बावजूद सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है. महागठबंधन में लालू यादव से बेहतर कोई नहीं जानता कि किस सीट पर क्या जातीय समीकरण है, किसे सीट दी जाये कि जीत सुनिश्चित हो.
महागठबंधन के पास लालू प्रसाद यादव जैसा रणनीतिकार भी कोई सामने नहीं दिख रहा है. ऐसे में सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति पर भी बड़ा असर पड़ेगा. तेज प्रताप यादव के राजधानी लौटने के बाद से तेजस्वी यादव से दूरी देखने को मिली है. रांची में लालू प्रसाद यादव से मिल कर लौटने के बाद तेज प्रताप यादव ने जनता दरबार लगाना शुरू कर दिया है. जनता दरबार में पार्टी कार्यकर्ता द्वारा एक महिला को सताये जाने की शिकायत मिलने पर वह तेजस्वी यादव से बात करने और आपराधिक प्रवृत्ति वाले कार्यकर्ताओं के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं होने की भी बात कह चुके हैं. लोकसभा सीटों को लेकर भी दोनों भाईयों के बीच सहमति को लेकर सवाल उठ सकते हैं. महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए तेज प्रताप यादव बड़ी बहन मीसा भारती को पाटलिपुत्र सीट से चुनाव लड़वाना चाहते हैं. ऐसे में सवाल उठने पर पार्टी के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता भाई वीरेंद्र सीट बंटवारे पर लालू प्रसाद यादव के फैसले पर अपनी सहमति जता चुके हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव हस्तक्षेप करते हैं, तो दोनों भाइयों के बीच दूरी बढ़नी तय है. ऐसे में एनडीए को फायदा होने से इनकार नहीं किया जा सकता.