अशाेक यादव, लखनऊ। अब जब मरने का समय आ गया है तो भी परेशान किया जा रहा है, सुबह से पांच छ बार डाक्टरों के हाथ पैर जोड़ चुके की भर्ती कर लो साहब, लेकिन कुछ नहीं हुआ,कहते हैं मेडिकल कालेज जाओ, नहीं तो यहां एक महीने बाद आना, चार-चार दिन हो जाता है,पानी की बूंद मुंह के अन्दर नहीं जाती है।
इतनी बुरी स्थित होने के बाद कहीं से मदद नहीं मिल रही है, महीनों से इलाज यहां करा रहे हैं तो कहां जायें…हर बार लोहिया संस्थान इलाज के लिए हजारो रूपये किराये में खर्च हो जाते हैं,यह दर्द उस मरीज ने बयां किया है जो महीनों से इलाज के लिए लोहिया संस्थान के चक्कर काट रहा है।
मरीज के परिजन प्रमोद बताते हैं कि पहले तो जांच में महीनों लग गये,कई बार दौड़ना पड़ा तब जाकर जांच पूरी हुयी,जब डाक्टर ने ऑपरेशन का समय दिया,तो तुरन्त पैसों का इंतजाम नही हो पाया और अब जब पैसों का इंतजाम हुआ तो जगह नहीं मिल रही है।
यही हाल जौनपुर से आये आसिफ का भी रहा। असिफ अपने दस साल के बच्चे का इलाज कराने लोहिया संस्थान शनिवार को आये थे, उनका आयुष्मान कार्ड बना हुआ है, लेकिन कुछ तकनीकी खाराबी होने की वजह से आयुष्मान कार्ड से पेमेन्ट नहीं हो पाया,जिससे बच्चे को भर्ती नहीं करा सके,अब सोमवार को दफ्तर खुलेगा,उसके बाद इलाज मिलेगा, असिफ के मुताबिक उनके बच्चे को किडनी में दिक्कत है, अब एक पैर में भी समस्या आ गयी है। कुलमिलाकर तकनीकी दिक्कत ने इलाज पर रोक लगा दी।
आसिफ और प्रमोद तो बानगी मात्र है, इस तरह के तमाम परेशान लोग लोहिया संस्थान के परिसर में रोजाना जमीन पर पड़े बेपटरी हो चुकी व्यवस्था के सुधरने की राह देख रहे होंगे।
डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में ढेरों कवायदों के बाद भी व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है। उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने लोहिया संस्थान प्रशासन को साफ निर्देश दे रखा है कि मरीजों को किसी प्रकार की दिक्कत न होने पाये, लेकिन यहां जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
सरकार की तमाम योजनाओं के बीच आयुष्मान योजना उन गरीबों के लिए वरदान साबित हो रही थी, जिनकी आर्थिक स्थित काफी कमजोर है,लेकिन व्यवस्था की मार से आयुष्मान कार्ड भी गरीबों को नहीं बचा पा रहा है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्की पीड़ित अपना दर्द खुद बयां कर रहे हैं। सिद्धार्थ नगर निवासी केवलपाती बताती है कि उनके बच्चे की किडनी खराब हो गयी है,जिसका इलाज लोहिया संस्थान में चल रहा है।
आयुष्मान कार्ड की वजह से अस्पताल में इलाज का पैसा नहीं देना पड़ता,लेकिन बाहर से दवायें नहीं खरीद पाती,वह बताती हैं कि मजदूरी कर घर का खर्च चलता है,पिछले महीने में पांच हजार की दवा बाहर से खरीदनी थी, 1700 रूपये ही पास थे,जिससे थोड़ी दवा ही खरीद पाये। वह कहती हैं कि यदि दवा भी कार्ड पर मिल जाया करे, तो बच्चे का इलाज चलता रहेगा।