बिजली कंपनियों ने सोमवार की रात चोर दरवाजे से वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) में सैकड़ों कमियों पर गोलमोल जवाब तैयार कर दाखिल कर दिया। इतना ही नहीं कंपनियों की ओर से नियामक आयोग द्वारा दिए गए निर्देश एआरआर को संसोधित भी नहीं किया गया। वहीं कंपनियों के नियमों को दरकिनार कर याचिका दाखिल करने पर उपभोक्ता परिषद भी सचेत हो गया।
प्रदेश की बिजली कम्पनियों द्वारा दाखिल वर्ष 2021-22 के लिये वार्षिक राजस्व आवश्यकता सहित ट्रू-अप वर्ष 2019-20 व एपीआर वर्ष 2020-21 को नियामक आयोग ने 12 मार्च को बिजली कम्पनियों को लौटा दिया था, जिसमे सैकड़ों कमियां निकली थी। इसके अलावा आयोग की ओर से कहा गया था कि जो बिजनेस प्लान के तहत एआरआर को अनुमोदित किया गया था उसे ही दाखिल करें।
दूसरी ओर कंपनियों द्वारा दाखिल याचिका में आयोग से मांग की गई है कि आयोग उपभोक्ताओं की बिजली दर को सरकारी सब्सिडी सहित और बिना सब्सिडी के घोषित करने पर विचार करें। इस मुद्दे पर बिजली विशेषज्ञयों ने बताया कि पावर कार्पोरेशन और बिजली कम्पनियां जो उनका काम है उसे भी आयोग क्यों कराना और क्या संदेश देना चाहती हैं।
इस मामले पर उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि नियामक आयोग ने तीन साल का बिजनेस प्लान अनुमोदित किया था। उस आंकड़ों पर बिजली कम्पनियों को वर्ष 2021-22 का एआरआर दाखिल करना था, लेकिन नहीं दाखिल किया। जिस पर आयोग ने कंपनिपों को लताड़ा था। इसके बाद भी एआरआर नहीं दाखिल किया। वहीं अब बिजली कम्पनियों ने ग्राउंड रॉयल्टी पर एआरआर दाखिल किया है, जबकि यही कम्पनियां जब आयोग द्वारा बिजनेस प्लान नहीं अनुमोदित किया गया था तो पत्र लिखा था कि जब तक बिजनेस प्लान अनुमोदित नहीं होता एआरआर कैसे दाखिल हो सकता है।
बता दें कि पूर्व में उपभोक्ता परिषद ने स्लैब परिवर्तन को खरिज करने सहित यह मुद्दा उठया था कि आयोग ने बिजनेस प्लान में जब वर्ष 2021-22 के लिए वितरण हानिया 11.08 प्रतिशत अनुमोदित कर दी थी, तो फिर एआरआर में उसे बढ़ाकर 16.64 प्रतिशत क्यों किया गया।