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रेलवे में विकसित होगी कारपोरेट संस्कृति, खत्म होगा कार्मिक विभाग

नई दिल्ली। रेलवे में इन दिनों कारपोरेट संस्कृति विकसित करने की दिन-रात कवायद चल रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णो ने अपने बोर्ड अध्यक्ष एवं चारों सदस्यों के साथ गंभीर मंत्रणा शुरू की है। जिसके तहत कार्मिक विभाग को समाप्त किया जाएगा और कम पैसे में ज्यादा से बेहतर यात्री सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सभी स्टेशनों पर पीपीपी योजना भी शुरू की जाएगी।

इतना ही नहीं 6 महीने तक रेलवे बोर्ड अपने कई विभागों को आपस में विलय या समाप्त करने भी जा रहा है। यह काम बिल्कुल उसी तरह होगा जैसे पहले रेलवे बोर्ड में 8 सदस्य होते थे जिन्हें घटाकर 4 कर दिया गया है और नौकरशाही के बिखराव को समाप्त करने के लिए 8 कैडरों की जगह सिर्फ इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस कैडर विकसित है।

भारतीय रेल अपने कर्मचारियों के अंदर मानवता के साथ कर्मशीलता विकसित करने के लिए मानव संसाधन विभाग भी खोलेगा और कार्मिक विभाग को बंद कर दिया जाएगा। रेलवे ने यात्रियों को संतुष्ट करने के लिए “सर्विस विद स्माइल” सेवा शुरू की थी लेकिन उसका कोई खास असर नहीं आया था।

उक्त जानकारी देने वाले सूत्रों के मुताबिक रेलवे के पास अभी तक ऐसी कोई योजना या तंत्र नहीं है जिसके तहत वह अपने कर्मचारियों को बेहतर यात्री सुविधाएं देने के लिए आधुनिक मानव संसाधन का प्रशिक्षण दे सके। अब यह काम मानव संसाधन विभाग करेगा और कर्मचारियों को ऊपर से नीचे तक “सूटेड बूटेड” रहना होगा। विभिन्न जोनल रेलवे से यह जानकारी भी मिली है कि रेल कर्मचारी ड्रेस, वाशिंग अलाउंस आदि लेते हैं मगर मौके पर वे अपडेट नहीं पाए जाते हैं जैसे टाई में बहुत कम कर्मचारी नजर आते हैं।

जब किसी बड़े अधिकारी या मंत्री का कार्यक्रम होता है तब रेलवे के कर्मचारी अपनी ड्रेस, टाई व जूते पहनते हैं। मगर अब उन्हें ना केवल सूटेड बूटेड मैं रहने के तौर तरीके बताए जाएंगे बल्कि यात्रियों से नमस्ते कह कर मुस्कुरा कर उनकी सेवा करना और रोजाना शेविंग करना भी अनिवार्य किया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक रेलवे के पास कार्मिक विभाग तो है लेकिन उसने केवल कर्मचारियों एवं अधिकारियों का रिकॉर्ड एवं उनकी तैनाती व रिटायरमेंट के अलावा कोई काम नहीं होता है। रेलवे में ज्यादातर यात्री सुविधाएं भी पीपीपी स्कीम के तहत निजी हाथों को सौंपी जाएंगी जिसका एचआर विभाग नेतृत्व करेगा।

अब छोटे से छोटे रेलवे स्टेशन पर भी चतुर्थ श्रेणी के बजाय पीपीपी स्कीम के तहत एक या दो कर्मचारी तैनात किए जाएंगे जिनके पास ऑफिस कार्य के अलावा स्वच्छता, सफाई, शौचालय, पेयजल एवं लाइटिंग आदि की जिम्मेदारी दी जाएगी। ताकि किसी भी छोटे स्टेशन पर कोई यात्री रेल सेवा को कलंकित न कर सके। पिछले दिनों राष्ट्रपति डॉ राम नाथ कोविंद इसी तरह के छोटे स्टेशन के लिए यात्रा पर निकले थे। वर्तमान में मध्यम स्तर तक के रेलवे स्टेशनों में यात्री सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है खासतौर से शौचालय एवं पेयजल व्यवस्था नहीं रहती है। उल्लेखनीय है कि नए रेल मंत्री को पीपीपी स्कीम का अंतरराष्ट्रीय तजुर्बा है।

रेलवे के स्वास्थ्य सेवाओं को भी मेडिकल कॉलेजों या राज्य सरकारों के अस्पतालों से संबद्ध करने की चर्चा चल रही है। एक सर्वे से पता चला है कि भारतीय रेल स्वास्थ्य सेवा के तहत भारी-भरकम भुगतान करता है उसके बावजूद उसके कर्मचारियों या अधिकारियों को राज्य या निजी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है।

सूत्रों के मुताबिक एक बड़ा परिवर्तन रेलवे सुरक्षा बल को लेकर भी चर्चा में है जिसके तहत रेलवे सुरक्षा बल को या तो समाप्त किया जाएगा या फिर इसे गृह मंत्रालय के अधीन कर अर्धसैनिक बल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसकी जगह राज्य सरकारों के पुलिस बल से संचालित होने वाले राजकीय रेलवे पुलिस को और मजबूत एवं संगठित बनाया जाएगा और उनकी कुछ निर्धारित वर्षों के लिए रेलवे में सेवाएं भी फिक्स की जाएंगी ताकि जवाबदेही निर्धारित हो सके।

दरअसल यह पहला मौका है जब रेलवे के इतिहास में मंत्री के रूप में कोई बहु प्रतिभा युक्त मजबूत व्यक्तित्व मिला है। रेल मंत्री श्री वैष्णो ना केवल आईएएस अधिकारी रहे हैं बल्कि कई देसी विदेशी कंपनियों के शीर्ष पदों पर काम भी कर चुके हैं।

रेलवे यूनियनों को समाप्त करने के लिए कुछ ऐसे प्रतिष्ठानों का उदाहरण दिया गया है जहां पर कोई यूनियन ना होने के बावजूद श्रमिक अशांति नहीं है और उत्पादन क्षमता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। जबकि रेलवे में यूनियन होने के बावजूद कर्मचारियों व अधिकारियों के बीच समन्वय नहीं है और अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत अब तक कई गुना ज्यादा गिरावट भी हो चुकी है। इसे सुधारने के लिए ही रेलवे यूनियनों के पर कतरे जाएंगे।

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