लखनऊ /नई दिल्ली : रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिन से जारी बैठक आज खत्म हुई. इस बैठक के बाद आरबीआई ने रेपो रेट 0.25 बेसिस प्वाइंट से बढ़ा दिया है. अब यह 6.25 प्रतिशत हो गया है. आरबीआई ने रिवर्स रेपो रेट भी 0.25 प्रतिशत बढ़ा दिया है. अब यह तय है कि इससे सभी लोन महंगे हो जाएंगे. अर्थव्यवस्था में लोन महंगे होने का कुछ असर पड़ेगा. जनवरी 2014 के बाद पहली बार आरबीआई ने यह किया है. यानी पिछले चार में पहली बार आरबीआई ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं. मीडिया को जानकारी देते हुए आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा, रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर (रेपो दर) 0.25 प्रतिशत बढ़कर 6.25 प्रतिशत किया है. आरबीआई ने 2018-19 की पहली छमाही के लिये खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को संशोधित कर 4.8-4.9 प्रतिशत तथा दूसरी छमाही के लिये 4.7 प्रतिशत किया. रिजर्व बैंक ने 2018-19 के लिये जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 7.4साल 2015 के जनवरी से ब्याज दरों में कटौती का चक्र शुरू हुआ था, जिस पर रोक लगाते हुए आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने बुधवार को प्रमुख ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की वृद्धि कर दी, जिसके बाद रेपो दर 6.25 फीसदी हो गई है. आरबीआई ने कहा, “नतीजतन, तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रिवर्स रेपो दर 6.00 फीसदी और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.50 फीसदी हो गई है.”
रिजर्व बैंक ने वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने पर चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति के बारे में अपने पहले के अनुमान को आज मामूली रूप से बढ़ा दिया. मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चली बैठक के बाद जारी वक्तव्य में रिजर्व बैंक ने कहा है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में तेजी से बढ़कर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. इस दौरान खाद्य , ईंधन को छोड़कर अन्य समूहों में तीव्र वृद्धि का इसमें अधिक योगदान रहा.
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अप्रैल में हुई बैठक के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की भारतीय बास्केट का दाम 66 डालर बढ़कर 74 डालर प्रति बैरल पर पहुंच गया. इसमें करीब 12 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई. विश्व बाजार में दूसरी उपभोक्ता जिंसों के दाम बढ़ने के साथ ही हाल के वैश्विक वित्तीय बाजार के घटनाक्रमों से विभिन्न उत्पादों के मामले में लागत दबाव बढ़ गया.
विभिन्न घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुये रिजर्व बैंक ने 2018- 19 की पहली छमाही के लिये खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को संशोधित कर 4.8- 4.9 प्रतिशत और इसके बाद की अवधि के लिये 4.7 प्रतिशत कर दिया. इसमें केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को मिलने वाले बढ़े हुये आवास किराया भत्ते का असर भी शामिल है. साथ ही इसमें वृद्धि का जोखिम भी बताया गया है. पिछली मौद्रिक समीक्षा में रिजर्वबैंक ने सरकारी कर्मचारियों के आवास किराया भत्ते के प्रभाव सहित पहली छमाही के लिये मुद्रास्फीति के 4.7- 5.1 प्रतिशत अैर दूसरी छमाही के लिये 4.4 प्रतिशत का अनुमान लगाया था.
रिजर्व बैंक ने आगे कहा है कि खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में होने वाले संशोधन के प्रभाव का इस समय आकलन करना संभव नही है , क्योंकि उपयुक्त ब्यौरा उपलब्ध नहीं है. इसके साथ ही बैंक ने कहा है कि यदि मानसून सामान्य रहता है और देश भर में इसका वितरण ठीकठाक रहता है तो इससे खाद्य मुद्रास्फीति में अनुकूल स्तर पर रह सकती है. कच्चे तेल के दाम हाल में काफी चढ़े हैं इससे मुद्रास्फीति परिदृश्य में काफी अनिश्चितता बनी है. यह अनिश्चितता इसमें वृद्धि और गिरावट दोनों को लेकर बनी है.
आरबीआई ने बयान में आगे कहा , “मौद्रिक नीति समिति का निर्णय मौद्रिक नीति के तटस्थ रुख के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के मध्यम अवधि के लक्ष्य चार फीसदी मुद्रास्फीति (दो फीसदी ऊपर-नीचे) प्राप्त करना है.”
बता दें कि यह पहला मौका है जब प्रशासनिक जरूरतों के कारण मौद्रिक नीति समिति की बैठक तीन दिन चली. सामान्य स्थिति में समिति मौद्रिक नीति की घोषणा से पहले दो महीने में दो दिन के लिये बैठक होती थी.
मौद्रिक नीति समीक्षा में खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर किया गया है जो अप्रैल में चार महीने के उच्च स्तर 3.18 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी. माना जा रहा है कि मुख्य रूप से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई दर बढ़ी है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में वृद्धि के कारण घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल के दाम चढ़े थे जो अब पिछले सात दिनों से कम होते चले आ रहे हैं. पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतें मुद्रास्फीति में वृद्धि भी हुई थी.बता दें कि हाल के समय में कच्चे तेल के मूल्यों में तेजी आई. चालू खाते का घाटा बढ़ा है और रुपये में भारी गिरावट आई है. बैंक ने 21 मार्च को 2018-19 के लिए द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक का कार्यक्रम जारी किया था. रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में छह सदस्यीय एमपीसी नीतिगत दरें निर्धारण करती है.
उल्लेखनीय है कि पहली मौद्रिक नीति समिति की पहली बैठक 4-5 अप्रैल को हुई थी और मुद्रास्फीति की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए ब्याज दरों पर यथास्थिति बनाए रखने का फैसला किया गया था.