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राजस्थान में बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले में विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में बसपा के सभी छह विधायकों के राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में विलय के मामले में दो याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को राज्य विधानसभा अध्यक्ष और अन्य को नोटिस जारी किए। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने इस मामले में विधानसभा सचिव और कांग्रेस में शामिल हुए बसपा के सभी छह विधायकों को भी नोटिस जारी किये हैं।

बहुजन समाज पार्टी और भाजपा के विधायक मदन दिलावर ने इस मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अलग अलग अपील दायर की हैं। उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त, 2020 को राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष से कहा था कि बसपा विधायकों के राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस में विलय के खिलाफ भाजपा के मदन दिलावार की अयोग्यता की याचिका पर तीन महीने के भीतर निर्णय करें।

साथ ही, उच्च न्यायालय ने दिलावर की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये 22 जुलाई को उनकी अयोग्यता याचिका अस्वीकार करने का अध्यक्ष का पिछले साल मार्च का आदेश निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय ने इस मामले में बसपा की याचिका खारिज करते हुये उसे अध्यक्ष के यहां अयोग्यता याचिका दायर करने की छूट प्रदान की थी।

दिलावर ने बसपा के विधायकों के विलय को चुनौती देते हुये उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि विधानसभा अध्यक्ष के आदेश के अमल पर रोक लगाई जाये। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर रोक लगाने के लिये दिलावर की याचिका को निरर्थक बताते हुये उसका निस्तारण कर दिया था क्योंकि उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर अपना आदेश पारित कर दिया था।

राजस्थान विधानसभा के लिये 2018 में हुये चुनाव में ये छह विधायक बसपा के टिकट पर जीते थे लेकिन बाद में सितंबर, 2019 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे। इन विधायकों में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीना, जोगेन्द्र अवाना और राजेन्द्र गुधा शामिल हैं। इन विधायकों ने 16 सितंबर, 2019 को कांग्रेस में विलय का आवेदन किया था और अध्यक्ष ने 18 सितंबर, 2019 को इस संबंध में आदेश दे दिये थे।

दिलावर ने इसे चुनौती देते हुये कहा था कि अध्यक्ष ने इन छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को गलत अनुमति दी है। राजस्थान की 200 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस में बसपा के इन विधायकों के विलय से गहलोत सरकार की स्थिति मजबूत हो गयी थी। बसपा विधायकों के विलय के बाद विधान सभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 100 से ज्यादा हो गयी थी।

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