जयपुर: राजस्थान में जनसंघ के दिनों से ही प्रभावशाली राजपूत समाज भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है, लेकिन हाल के दिनों में वसुंधरा राजे और राजपूत समाज के बीच रिश्ते में आई तल्खी भाजपा के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। ऐसे में भाजपा विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए राम के नाम पर राजपूतों का दिल जीतने की जुगत में है।
12 प्रतिशत राजपूत मतदाता
बता दें कि राजस्थान में करीब 12 प्रतिशत राजपूत मतदाता हैं और तकरीबन 3 दर्जन विधानसभा सीटों पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव है। वसुंधरा सरकार में राजपूत समुदाय से 3 कैबिनेट मंत्री और एक राज्यमंत्री है। राजस्थान में राजपूतों को भाजपा के करीब लाने का श्रेय राजपूत नेता व पूर्व उप-राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत को जाता है। शेखावत 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। राज्य की मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को राजनीति में लाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।
इन मुद्दों से हैं नाराज
हालांकि राजमहल भूमि विवाद, पद्मावत
फिल्म विवाद, गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाऊंटर और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए केंद्रीय नेतृत्व की पसंद, गजेंद्र सिंह शेखावत का राजे द्वारा विरोध करने से राजपूतों की नाराजगी की वजह मानी जा रही है। विधायक व पूर्व केंद्रीय मंत्री व राजपूत नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। ऐसे में वसुंधरा राजे की लगातार दूसरी सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बने राजपूतों को साधने की रणनीति शुरू हो गई है।
राजस्थान में राजपूत समुदाय के हक की लड़ाई लडऩे का दम भरने वाली करणी सेना के संरक्षक लोकेंद्र सिंह कालवी बुधवार को अयोध्या पहुंचे और उन्होंने कहा कि हम राम के वंशज हैं क्योंकि वह क्षत्रिय थे। कालवी ने राम जन्मभूमि के दर्शन किए और महाराणा प्रताप की कसम खाते हुए कहा कि अब रामलल्ला का दर्शन तभी करने आएंगे जब भव्य मंदिर बनेगा वर्ना यह आखिरी दर्शन होगा।
राजस्थान चुनाव: राम के नाम पर रूठे राजपूतों का दिल जीतने की जुगत में बीजेपी
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