लखनऊ : यूपी सरकार के दफ्तरों, मंत्रियों और विधायकों पर लगभग 10,000 करोड़ बिजली बिल बाकी है. सरकार ने घाटे की वजह से जब प्रदेश के पांच शहरों और सात ज़िलों की बिजली प्राइवेट कंपनी को देने का फ़ैसला किया तो कर्मचारियों ने दावा किया कि घाटे की असली वजह तो सरकार है. सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ कर्मचारी आंदोलन पर हैं..और 9 तारीख से 72 घंटे तक काम बंद करने वाले हैं.बिजली प्राइवेट कंपनी को देने के खिलाफ कर्मचारी सड़कों पर हैं. उनका कहना है कि सरकार जिस घाटे के नाम पर प्राइवेटाइज़ेशन कर रही है…उसके लिए सरकार ज़िम्मेदार है. जिसने अपना बिल नहीं भरा..बिजली विभाग के आंकड़ों के मुताबिक लखनऊ में सरकारी वीआईपी गेस्ट हाउस पर 2,65,00000 रुपये, मल्टी स्टोरी मंत्री आवास पर 1,47,00000, स्पीकर हृदयनारायण दीक्षित पर 12,64,000, खेल मंत्री चेतन चौहान पर 17,72,000, बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा पर 6,51,000, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही पर 9,28,000, डिप्टी सीएम केशव मौर्या पर 10,80,000, शहरी विकास मंत्री सुरेश खन्ना पर 9,20,000, औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महना पर 7,83,000 और वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल पर करीब 9,00000 रुपये बिजली का बिल बाक़ी है. कर्मचारियों का आरोप है कि निजीकरण पूंजीपतियों को फयदा पहुंचाने के लिए हो रहा है.
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने एनडीटीवी से कहा कि “21 और 22 फरवरी को लखनऊ में हुई इनवेस्टर्स समिट में ही यह तय हो गया था कि किस उद्योगपति को बिजली का काम देना है. ऐसा मुझे कुछ बड़े अफसरों ने बताया है.साफ है कि किसी पूंजीपति को फायदा पहुंचने के लिए ही निजीकरण किया जा रहा है.”