अशाेक यादव, लखनऊ। 13 जनवरी की रात 12 बजे से प्रदेश के सभी जिला पंचायत अध्यक्षों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। इसके साथ इन जिला पंचायतों में जिलाधिकारी प्रशासक बन जाएंगे। इन जिला पंचायत अध्यक्षों का बीता कार्यकाल काफी सियासी उठापटक वाला रहा। राज्य निर्वाचन आयोग से मिले आंकड़ों के अनुसार 2017 में जिपं अध्यक्ष के खिलाफ पांच अविश्वास आए और छह जिला पंचायत अध्यक्षों को त्यागपत्र देने पड़े।
वर्ष 2018 में दो जिपं अध्यक्ष के त्यागपत्र के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आए और सात जिला पंचायत अध्यक्षों को त्यागपत्र देने पड़े। 2019 में एक जिपं अध्यक्ष ने त्यागपत्र दिया और तीन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाये गये। इसके बाद आयोग को इन पदों पर उपचुनाव करवाने पड़े।
बताते चलें कि जिला पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत के सीधे जनता से चुने गये सदस्यों के द्वारा ही चुने जाते हैं। ऐसे में सदस्यों की खरीद फरोख्त से यह चुनाव होते हैं, जिसमें धनबल, बाहुबल का खूब इस्तेमाल होता है।
इसके बाद समय-समय पर सदस्यों की गुटबाजी व सियासी चालों की वजह से जिपं अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाते हैं या दबाव बनाकर उन्हें त्यागपत्र देने के लिए विवश किया जाता है। इसी वजह से जिपं अध्यक्ष का चुनाव भी सीधे जनता से करवाने की मांग बार-बार उठती रही है। खुद सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेता यह मांग उठाते रहे हैं।
मौजूदा प्रदेश सरकार ने राज्य के आगामी त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष यानि ब्लाक प्रमुख के चुनाव भी ग्राम प्रधान की ही तरह सीधे जनता से करवाने के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था। केन्द्रीय पंचायतीराज अधिनियम में संशोधन करने को केन्द्र को भेजे गये प्रस्ताव पर फिलहाल कोई फैसला नहीं हो सका।
चूंकि 73वें संविधान संशोधन में यह प्रावधान किया गया है कि जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष चुने हुए सदस्यों के द्वारा चुने जाएंगे इसलिए केन्द्र सरकार को इस 73वें संविधान संशोधन में दूसरा संशोधन करना होगा। मगर अब इस बार के यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनाव के लिए यह मुमकिन नहीं दिखता।
भाजपा के पंचायतीराज प्रकोष्ठ के पूर्व सह संयोजक (अवध) रत्नेश मौर्य का कहना है कि जिला व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के चुनाव भी सीधे जनता से ही करवाने के लिए संविधान में संशोधन करवाया जाना चाहिए।
श्री मौर्य इस बाबत पहले भी प्रदेश सरकार को पत्र लिख चुके हैं। राष्ट्रीय पंचायतीराज ग्राम प्रधान संगठन के प्रवक्ता ललित शर्मा भी मानते हैं कि अगर जिपं व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के चुनाव सीधे जनता से होंगे तो इससे सदस्यों की खरीद-फरोख्त, धनबल, बाहुबल के अनुचित प्रयोग व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।