मुंबई: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने इस महीने की शुरूआत में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दर को यथावत रखने का समर्थन किया था। इसका कारण मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति परिदृश्य को लेकर अनिश्चितता थी। हालांकि उन्होंने उपयुक्त समय में मौद्रिक रुख में नरमी की संभावना भी जतायी। एमपीसी बैठक के बारे में रिजर्व बैंक द्वारा जारी ब्योरे के अनुसार समिति के सभी छह सदस्यों ने प्रमुख नीतिगत दर को बरकरार रखने के पक्ष में राय दी थी।
आरबीआई ने 3 से 5 दिसंबर को मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर बरकरार रखा। रेपो दर वह दर है जिसर पर केंद्रीय बैंक, बैंकों को कर्ज देता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में 2.33 प्रतिशत रही जो 17 महीने का न्यूनतम स्तर है। पटेल के हवाले से बैठक के ब्योरे में कहा गया है कि हालांकि मुद्रास्फीति में वृद्धि की दर संशोधित कर कम की गयी है लेकिन इसके बावजूद कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। खासकर खाद्य मुद्रास्फीति तथा तेल कीमतों को लेकर मध्यम अवधि के परिदृश्य को लेकर अनिश्चितता है…इसीलिए मैं नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में मतदान करता हूं।’’
आरबीआई के कार्यकारी निदेशक देबव्रत पात्रा, एमपीसी में शामिल भारतीय प्रबंधन संस्थान के पूर्व प्रोफेसर रवीन्द्र एच ढोलकिया, दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स की निदेशक पामी दुआ और चेतन घाटे ने भी यथास्थिति बनाये रखने का समर्थन किया था। पटेल ने कहा था कि जो जोखिम है, हो सकता है आने वाले महीनों में उत्पन्न नहीं हो, ऐसे में उपयुक्त समय पर मौद्रिक नीति रुख में नरमी की संभावना है। उन्होंने 10 दिसंबर को आरबीआई के गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया।