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मोदी सरकार की हरि नीति का ऑटो इंडस्ट्री में विरोध, नाखुश है वाहन निर्माता

नई दिल्ली: बढ़ते प्रदूषण व ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए नीति आयोग सख्ती बरतने की तैयारी कर रहा है। आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें ज्यादा प्रदूषित शहरों में निजी गाड़ियों के इस्तेमाल पर कंजेशन शुल्क लगाने की सिफारिश की गई है। आयोग को उम्मीद है कि इससे निजी वाहनों का इस्तेमाल कम होगा और प्रदूषण घटेगा हालांकि ऑटो इंडस्ट्री इस प्रस्ताव का विरोध कर रही है। उनका कहना है कि उनका गाड़ियों पर पहले से ही टैक्स काफी ज्यादा है। ऑटो इंडस्ट्री पर टैक्स किसी विकसित देश की तरह है। टैक्स के बाद भी कंपनियों पर अतिरिक्त भार है जिसके चलते भारत में ऑटो मोबाइल कंपनियों पर आर्थिक दबाव ज्यादा है। भारत मे ऑटोमोबाइल्स को बढ़ावा देना जरुरी है। यात्री वाहन माल और सेवा कर की उच्चतम दर को 28ः की स्लैब में रखे गए है।

इसके अलावा, डीजल वाहनों पर 3-22ः का टैक्स लगाया जाता है, जो वाहन की आकार और इंजन क्षमता पर निर्भर करता है। इसके अलावा, डीजल वाहनों पर रोड टैक्स पेट्रोल से चलने वालों की तुलना में अधिक है- दिल्ली में, यह 25ः है। इलेक्ट्रिक गाड़ी खरीदने पर 25,000-घ्50,000 तक इंसेन्टिव की भी सिफारिश की गई है। इंसेन्टिव सीधे खरीददार के खाते में जाएगा। सरकार को पहले साल इस शुल्क से 7,500 करोड़ मिलने की उम्मीद है। ये भी सिफारिश की गई है कि इलेक्ट्रिक गाड़ी के कॉम्पोनेंट्स और बैटरी पर जीएसटी घटनी चाहिए और इलेक्ट्रिक गाड़ी के रजिस्ट्रेशन की फीस माफ होनी चाहिए। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव का कहना है कि सिर्फ कारों पर सेस लगाने से बात नहीं बनेगी। ईवी लाने के लिए 2 व्हीलर पर भी सेस होना चाहिए। ईवी पर सब्सिडी की जरूरत नहीं है। छोटी गाड़ियों को ईवी करने पर कॉस्ट बढ़ेगी। कुछ हजार सब्सिडी देने से खास फर्क नहीं पड़ेगा।

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