पटना: डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि अगर हाइकोर्ट का कोई फैसला पूर्व सीएम के लिए आवंटित बंगला को रद्द करने से संबंधित आता है, तो सरकार इससे संबंधित कानून में अहम बदलाव करने को तैयार है. इसके लिए राज्य में बने कानून की अहम धाराओं को निरस्त करने की कवायद की जायेगी. बुधवार को डिप्टी सीएम ने 2, पोलो रोड स्थित सरकारी आवास को खाली कर दिया. तत्काल उन्होंने अपना अस्थायी ठिकाना 25-ए, हार्डिंग रोड में बनाया है. इस दौरान आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि अब हाइकोर्ट के डबल बेंच का फैसला आने के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव को अपना वर्तमान सरकारी आवास खाली कर देना चाहिए. अगर वे अब भी आवास खाली नहीं करते हैं, तो भवन निर्माण विभाग उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है. उन्होंने कहा कि वे खरमास या किसी अशुभ तिथि जैसी बात को नहीं मानते हैं. मजाकिये लहजे में कहा कि उन्होंने तो अपनी शादी भी बिना किसी मुहूर्त के की थी,
लेकिन 40 साल से अच्छी चल रही है. इसलिए वे जितनी जल्दी बंगला खाली कर दें, वे चले जायेंगे. किसी डेटलाइन की जरूरत नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बंगला खाली करते समय वे उसमें मौजूद किसी सामान को साथ नहीं ले जाये. राजद की यह संस्कृति रही है कि जाते समय सरकारी बंगला का सभी सामान साथ लेकर जाये. दो पोलो रोड बंगला को छोड़ते समय वे भी सभी सरकारी सामानों को जस का तस छोड़कर जा रहे हैं. नेता प्रतिपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि 52 संपत्ति के मालिक तेजस्वी यादव को बंगले की क्या कमी है. उनके पास तो पांच आलीशान घर के अलावा मां राबड़ी देवी के नाम पर मौजूद 42 फ्लैट और पिता के मकान भी हैं. तेजस्वी के पास जो पांच बंगले हैं,
उसमें गोपालगंज में दो, पटना में प्रभुनाथ यादव का गिफ्ट दिया एक बंगला, टिस्को का एक गेस्ट हाउस और एबी स्पोर्ट का चार मंजिला मकान शामिल हैं.फिर भी वे एक अदने से मकान के लिए लड़ रहे हैं. हालांकि, उनकी मंशा सरकारी आवास खाली करने की नहीं है, क्योंकि जब वे भवन निर्माण मंत्री थे, तो इसमें करोड़ों रुपये खर्च करके बनवाया था. उन्होंने कहा कि उनके साथ पूरी पार्टी बेशर्म की तरह खड़ी हो जाती है. आश्चर्य होता है कि डॉ रामचंद्र पूर्वे जैसे वरिष्ठ नेता भी उनके साथ हो जाते हैं. मकान को बिना किसी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए तुरंत खाली करने का निवेदन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष से किया. इस मकान पर कोई नैतिक और संवैधानिक अधिकार नहीं है.