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मोदी के गढ़ में जुटे देश भर के बिजली इंजीनियर, भरी हुंकार

वाराणसी। बिजली सेक्टर और बिजली कर्मचारियों के हितों से जुड़े ज्वलंत मुद्दों और निजीकरण के नाम पर बिजली के क्षेत्र मे चल रहे मेगा घोटालों को रोकने के लिए राजनीतिक दल चुनाव पूर्व अपनी नीति स्पष्ट करें। साथ ही बताएं कि चुनाव बाद की रणनीति क्या होगी। यह मुद्दा रविवार को उठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में। मुद्धा उठाया ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन की फेडरल एक्जीक्यूटिव कमेटी ने।रविवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी मे हुई मीटिंग के बाबत फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने बताया की उन्होने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य राजनीतिक दलो के अध्यक्षों को पत्र भेजकर बिजली के निजीकरण की नीति से हो रहे भारी नुक्सान और आम जनता पर पड़ रही महंगी बिजली की मार के साथ ही बिजली कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाली और संविदा व ठेके के कर्मचारियों को नियमित करने का सवाल भी उठाया है।

उन्होंने बताया कि फेडरेशन की फेडरल एक्जीक्यूटिव कमेटी ने निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए।विगत वर्षों में बिजली और कोयला क्षेत्र के निजीकरण के प्रयासों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं बिजली के क्षेत्र में निजी घरानों को मनमानी छूट देने का नतीजा यह है कि लगभग 02.40 लाख करोड़ रुपये के बिजली संयंत्र ठप्प पड़े हैं,स्ट्रेस्ड असेट हो गए हैं जिसका खामियाजा इन्हे कर्ज देने वाले सरकारी क्षेत्र के बैंकों को भी उठाना पड़ रहा है गलत ऊर्जा नीति के चलते बिजली कंपनियों पर 10लाख करोड़ रुपये से अधिक का घाटा और कर्ज हो गया है,भ्रष्टाचार के चलते निजी घरानों द्वारा कोयला आयात और बिजली प्लांट के आयात के नाम पर 50हजार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सामने आया है जिस पर खुफिया रिपोर्ट आ चुकी है जिसे दबाया जा रहा है,केंद्रीय विद्युत् प्राधिकरण को शक्ति देने की बात भी राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में हो जिससे भविष्य में मनमानी परियोजनाएं न बनने पाएं,

बिजली फेडरेशन ने मांग की है कि राजनीतिक दल यह वायदा करें कि वे एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर ( जिसमे बिजली कर्मचारी व् उपभोक्ता भी हों) इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 की समीक्षा करेंगे, खासकर जल्दबाजी में बिजली बोर्डों का विघटन कर कई कार्पोरेशन बनाए जाने के दुष्परिणामों और निजीकरण के लिए किए जाने वाले और संशोधनों विशेषतया इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2014 /2018 को पूरी तरह समाप्त करने पर विचार करेंगे। उच्च स्तरीय समिति का मुख्य उद्देश्य बिजली निगमों का एकीकरण कर बिजली बोर्ड निगम का पुनर्गठन करना होगा जिसमे बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण एक साथ हों। फेडरेशन ने यह भी प्रस्ताव पारित किया है कि ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करने और पुरानी पेंशन बहाली का वायदा भी सभी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में करे जिससे समय रहते देश के 25 लाख बिजली कर्मी और उनके परिवार यह निर्णय ले सकें कि वे आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें वोट दें या न दें।

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन की मीटिंग मे गुजरात, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असोम सहित 22 प्रांतों के बिजली इंजीनियर प्रतिनिधियों ने भाग लिया। फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे, सेक्रेटरी जनरल रत्नाकर राव, मुख्य संरक्षक पद्म्जीत सिंह, संरक्षक अशोक राव, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील जगताप, बी आर मिश्र, उपाध्यक्ष जी के मिश्र, सेक्रेटरी राजीव सिंह ,बी एल यादव, पवन जैन, प्रशांत चतुर्वेदी, वी के एस परिहार, एल रवि, ए एन जयराज, श्रीनिवासलू, जार्ज मैथू, वाई एस परमार, पीरजादा हिदायतुल्ला, के डी बंसल, प्रीतम कीरो सहित कई प्रमुख पदाधिकारी बैठक में सम्मिलित हुए।

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