नई दिल्ली: मेघालय हाई कोर्ट ने 10 दिसंबर को अपने फैसले में केंद्र सरकार से अपील की है कि भारत को इस्लामिक देश बनने से बचाया जाना चाहिए और साथ में यह भी कहा कि आजादी के समय जिस तरह पाकिस्तान इस्लामिक देश बना उसी तरह भारत को भी हिन्दू राष्ट्र बनना चाहिए था। जस्टिस सुदीप रंजन सेन ने अमन राणा नामक एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि विभाजन के समय लाखों सिखों और हिंदुओं की हत्या की गई , उनके साथ अत्याचार और बलात्कार किया गया, उन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति छोडने के लिए मजबूर कर दिया गया और उन्हें अपने जीवन और इज्जत को बचाने के लिए भारत में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया गया।
विभाजन के समय पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामिक देश घोषित कर दिया और भारत जो धर्म के आधार पर विभाजित हुआ था उसे हिंदू देश घोषित किया जाना चाहिए था, लेकिन वह एक धर्मनिरपेक्ष देश बना। भारत ने खून बहा कर आजादी हासिल की और सबसे ज्यादा पीड़ित हिंदू और सिख थे जिन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति, जन्म स्थान को आंसुओं और डर से छोडना पड़ा और हम इसे कभी नहीं भूलेंगे। हालांकि, यह उल्लेख करना गलत नहीं होगा कि जब सिख आए, तो उन्हें सरकार से पुनर्वास मिला, लेकिन हिन्दुओं को समान व्यवहार नहीं मिला। यह कहना सही नहीं है कि भारत ने स्वतंत्रता अहिंसा से हासिल की बलिक यह हिंसा के माध्यम से हासिल हुई है जिसमें लाखों की तादाद में हिंदुओं और सिखों ने अपनी जिंदगी, संपत्ति, भूमि और आजीविका का बलिदान किया।
आज भी, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में, हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंती और गारो पर अत्याचार किया जाता है, उनके पास कहीं और जाने के लिए कोई जगह नहीं है और विभाजन के दौरान भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं को अभी भी विदेशी माना जाता है , जो मेरी समझ में बेहद अनौपचारिक, अवैध और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। कानून लोगों के लिए बनाए जाते हैं न कि लोगों को कानूनों के लिए बनाया जाता है और यह भी एक तथ्य है कि कानून तभी प्रभावी हो सकते हैं जब वह इतिहास और जमीनी वास्तविकता को ध्यान में रखे। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि किसी को भारत को एक और इस्लामिक देश बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, अन्यथा यह भारत और दुनिया के लिए कयामत का दिन होगा।
मुझे पूरा भरोसा है कि नरेंद्र मोदी के अधीन सरकार इस विषय की गंभीरता को समझेगी, और उपर्युक्त अनुरोध पर कदम उठाएगी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर इसका समर्थन करेंगी। मैं प्रधानमंत्री, कानून मंत्री और सांसदों से अपील करता हूं कि वे कानून पास करें जिसमे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंती और गारो समुदाय के लोगों को बिना प्रमाणपत्र के देश की नागरिकता दी जाए। मैं उन मुस्लिम भाई और बहनों के खिलाफ नहीं हूं जो कई पीढियों से भारत में रह रहे हैं जो देश के कानून का पालन करते हैं वह शांतिपूर्वक यहां रह सकते हैं। कोर्ट सरकार से आशा करती है कि वह इस अदालत के फैसले पर गौर करेगी और देश और उसके नागरिकों की रक्षा करेगी।