सूर्योदयभारत समाचार सेवा, लखनऊ : महाकवि कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह आधुनिक हिन्दी कविता के एक बड़े कवि हैं,उनका सम्पूर्ण काव्य हिन्दी जगत के सामने हैं। उनके इस काव्य को देखकर कोई भी यह कह सकता है कि उनसे बड़ा कोई दूसरा कवि आधुनिक युग नहीं पैदा हुआ है। उनकी कविता प्रेम और सौन्दर्य से लेकर देश-प्रेम तथा मानव-प्रेम तक फैली हुयी है। उनके द्वारा देश-प्रेम पर लिखी गयी कविताएँ उन्हें सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रकवि घोषित करने के लिए पर्याप्त है। मानव-प्रेम पर लिखी गयी उनकी कविताएँ उन्हें मानवतावाद का शिखर कवि बनाने में सफल हुयी हैं। उक्त उदगार न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने महाकवि कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह की काव्य-साधना के दो ग्रन्थों के लोकार्पण समारोह के अवसर पर निराला नगर स्थित रेंगनेन्ट होटल में व्यक्त किये। उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि कुँवर जी के इन ग्रन्थों की कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं कि कुँवर जी बीसवी शताब्दी के बहुत बड़े कवि थे और उनके कारण हिन्दी की छायावादी कविता शताब्दी व्यापी बन सकती है।
इस अवसर पर कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह की ग्रन्थावली के प्रधान सम्पादक तथा अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो० शिव मोहन सिंह ने कहा कि कुँवर साहब छायावाद के अन्यतम उन्नायक कवि हैं। उन्होंने अपनी दीर्घकालीन काव्य-साधना से छायावाद को शताब्दीव्यापी व्यक्तित्व प्रदान किया है वे अनुभूति और अभिव्यक्ति के अन्यतम कवि हैं, काव्य-भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। उनकी काव्य-भाषा संस्कृत की तत्सम शब्दावली से सम्पन्न प्रांजल काव्यभाषा है।
समारोह के अध्यक्ष डॉ० कन्हैया सिंह ने कहा कि कुँवर जी मूलतः कवि वह भी छायावाद की स्वाधीन चेतना के कवि थे ! उनकी कविता का सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय स्वरूप उन्हें आधुनिक युग का महान कवि घोषित करता है, वे उच्चकोटि के भक्त कवि भी है। भक्त कवि ही उच्चकोटि का देश-प्रेमी तथा मानव–प्रेमी कवि हो सकता है। इसीलिए उन्हें राष्ट्रवाद तथा मानवतावाद का शिखर पुरुष कहना उचित होगा।
लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि कुँवर जी महाकवि निराला की परम्परा के महान शिल्पी कवि हैं। उनकी कविता में निराला के व्यक्तित्व की अमिट छाप है। उन्होंने अपने गीतों से हिन्दी का जो श्रृंगार किया है वह अपने आप में अनूठा है। वे प्रकृति के चतुर चितेरे कवि हैं उन्होंने उनकी काव्य- साधना के अन्तिम वर्षों सन् 1994 में रचे गये गीत की समीक्षा करते हुए कहा कि भाव, भाषा, शैली, छन्द अलंकार की दृष्टि से यह गीत अपने आप में बेजोड़ है।
इस अवसर पर दयानन्द सरस्वती नेशनल महाविद्यालय बछरावाँ के पूर्व प्राचार्य डॉ० रामनरेश यादव ने कहा कि वे बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ भाषाशिल्पी कवि हैं। उनकी कविता की अनुभूति तथा उनकी काव्य भाषा अतुलनीय है। हिन्दी में जब – जब निराला की चर्चा होगी तब – तब कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह को भुला पाना सम्भव नहीं है।
इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के हिन्दी विभाग की आचार्य डॉ० अलका पाण्डेय ने सरस्वती वन्दना की और कुँवर साहब के ज्येष्ठ पुत्र डॉ० रविप्रकाश सिंह ने अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
समारोह का संचालन इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद के हिन्दी विभाग के आचार्य डॉ० विनम्र सेन ने किया। उन्होंने अपने संचालन से इस समारोह के विमर्श को सारगर्भित बनाये रखते हुए अपनी टिप्पणियों से कुँवर साहब की साधना की सार्थकता को भी प्रमाणित किया है। इस अवसर पर उच्च न्यायालय के एडवोकेट उमेश प्रताप सिंह, अजय सिंह, विनय सिंह, पूर्णेन्दु सिंह सहित तमाम गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।