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‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के प्रणेता नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी की नई पुस्‍तक का विमोचन किया गया.

लखनऊ : मशहूर शायर निदा फाजली की ये पंक्तियां यूं तो किसी फिल्‍म के खूबसूरत बोल भी बने लेकिन इसके अंदर की मार्मिक सच्‍चाई यही है कि एक मासूम बच्‍चे की मुस्‍कान किसी इबादत से कम नहीं है. उसकी निश्‍छल मुस्‍कान दुनिया का सबसे बड़ा रूहानी सुकून है. ऐसे में जब सालों से युद्धग्रस्‍त सीरिया से बच निकलने की जद्दोजहद में एक परिवार के तीन साल के मासूम अयलान कुर्दी की बॉडी समुंदर की रेत पर डूबती-उतराती दिखती है और 2015 के शरणार्थी संकट की दुनिया भर में तस्‍वीर बन जाती है जोकि कातर स्‍वर में कहती है कि आखिर मेरा गुनाह क्‍या था? तो मनुष्‍यता शर्मसार हो जाती है क्‍योंकि इसी तरह हर साल लाखों बेगुनाह बच्‍चे जंग की चपेट में मारे जाते हैं.

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के प्रणेता नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी पिछले 38 सालों से इन्‍हीं सवालों का समाधान तलाश रहे हैं. इसी कड़ी में बाल श्रम, मानव तस्‍करी, बच्‍चों के सुरक्षित बचपन और जरूरतों पर उनके आलेखों, इंटरव्‍यू की नई पुस्‍तक ‘Every Child Matters’ (ईवरी चाइल्‍ड मैटर्स) प्रकाशित हुई है. इसमें बचपन बचाने की उनकी जद्दोजहद, निजी और वैश्विक संघर्ष, सफलताओं और विफलताओं का जिक्र मिलता है. Prabhat Paperbacks (प्रभात पेपरबैक्‍स) ने इस पुस्‍तक को प्रकाशित किया है. इसमें मासूम बचपन के कमोबेश सभी विषयों को छुआ गया है.

इसी कड़ी में कैलाश सत्‍यार्थी ने लिखा है कि इस वक्‍त दुनिया में 60 करोड़ बच्‍चे भुखमरी का शिकार हैं. 15.2 करोड़ बच्‍चों को बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है. छह करोड़ से अधिक बच्‍चे स्‍कूल छोड़ने को मजबूर हैं. भारत जैसे तमाम मुल्‍कों में जन स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा का आलम इतना बदतर है कि बच्‍चों का भविष्‍य अधर में ही दिखता है. हालांकि इसके साथ ही सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि सार्वभौमिक रूप से शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महज 40 अरब डॉलर की दरकार है लेकिन इस फंड को इकट्ठा करना बड़ी चुनौती है, जबकि इसका 50 गुना अधिक दुनिया भर में सशस्‍त्र सेनाओं पर खर्च कर दिया जाता है

लेकिन इस अंधेरी सुरंग से भी रोशनी की किरण दिखती है. कैलाश सत्‍यार्थी ने इसमें उन प्रयत्‍नों का जिक्र भी किया है जिससे बच्‍चों के होठों पर मुस्‍कान भी देखने को मिली है. बाल विवाह के खिलाफ वह दशकों से संघर्ष करते रहे हैं. उसी का प्रतिफल है कि हाल में सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग पत्‍नी के साथ शारीरिक संबंध को बलात्‍कार करार दिया है. हालिया वर्षों तक गरीब परिवारों के बच्‍चों की गुमशुदगी कोई बड़ी खबर नहीं होती थी. कई बार तो पुलिस भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करती थी. हर साल इस तरह गायब हुए हजारों बच्‍चे मानव तस्‍करों के हाथ लग जाते थे. इस कड़ी में कैलाश सत्‍यार्शी के सतत प्रयासों का ही नतीजा रहा कि 2017 में भारत सरकार ने अंतत: अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन के कंवेंशन 138 और 182 को अंगीकार किया है. ये उपबंध बाल श्रम के सबसे खराब तरीकों का प्रतिषेध करते हैं.

इन सामूहिक प्रयासों का ही नतीजा है कि वैश्विक स्‍तर पर बाल श्रमिकों की संख्‍या 26.8 करोड़ से घटकर 15.2 करोड़ रह गई है. गुणवत्‍तापरक शिक्षा के लिहाज से स्‍कूल छोड़ने वाले बच्‍चों की संख्‍या 13 करोड़ से घटकर छह करोड़ रह गई है. हालांकि इन प्रयासों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि थोड़ा है, ज्‍यादा की जरूरत है. उसी कड़ी में यह नई किताब आत्‍ममंथन के लिए प्रेरित करती है.

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