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मकर संक्रांति 2019: जानिए देश भर में कैसे मनाया जाता है ‘मकर संक्रांति’ का पर्व और क्या है इसका महत्व

मकर संक्रांति देश के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस पर्व को अलग-अलग नामों से देश के विभिन्न भागों में व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। साल 2019 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति को संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है। इस पर्व को लेकर आम धारणा यह है कि इसमें सूर्य उत्तरायण होते हैं। साथ भी अशुभ महीना खरमास की भी समाप्ति हो जाती है।
मकर संक्रांति का महत्व
भारतीय संस्कृति पर्व-त्यौहारों की संस्कृति है। पर्व प्रेरणा के प्रतीक हैं। प्रेरणा उत्साह की, उमंग-उल्लास और खुशहाली की पर्वों से प्राप्त होती है। जीवन में शुभ क्रांति का उद्‌घोष है मकर-संक्रांति का पर्व। मकर संक्रांति से उत्तरायण का आरंभ होता है। तिल-तिल कर दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी, अंधेरा घटने लगता है, प्रकाश बढ़ने लगता है, अज्ञान का अंधेरा कम हो, ज्ञान का प्रकाश धरा पर फैले, प्रेम-प्यार का विस्तार हो। जीवन में शुभ शुरूआत हों। इस पर्व में तिल का अधिक महत्व होता है, तिल-गुड-शक्कर के लड्‌डू बनाए जाते हैं, तिल का दान किया जाता है। छोटा-सा तिल यह प्रेरणा देता है कि जो सुंदर संसार को देखने की ज्योति हमारी आंखों में विद्यमान है उसका आकार तिल जैसा ही है। उसी से संसार के सारे छोटे-बड़े पर्वत-नदियां, पेड-पौधे-फल-फूल-पत्ते-लताएं, सूरज-चांद-सितारे-धूप छांव दिखाई देते हैं। तिल बाहर से काला होता है, किंतु जब उसका छिलका उतार दिया जाता है तो भीतर से उसका सफेद रूप सामने आता है। इसी तरह मनुष्य के मन पर माया की परत है वह उतर जाए तो जीवन में मंगल यात्रा की शुरूआत होती है।
मकर संक्रांति और सूर्य उपासना
भगवान्‌ सूर्य के मकर राशि में प्रवेश वाली संक्रांति मकर संक्रांति कहलाती है। यह महान पर्व सूर्योपासना का पर्व है, सूर्य की किरणें सबके जीवन को प्रकाशित करती है, सुख-समृद्धि, आरोग्यता, पोषण सूर्य भगवान्‌ की कृपा की से प्राप्त होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों बेला संधिबेला कहलाती हैं। यही वह समय होता है जब भक्त भगवान्‌ से जुड़ता है, पूजा-प्रार्थना, यज्ञ-याग करता है। यह पर्व अधिकांशतया 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन लंबे अंतराल के बाद इसकी तिथि में एक दिन का अंतर आ जाता है। इस वर्ष भी कई प्रसिद्ध ज्योतिषी 15 जनवरी को इस पर्व का शुभ मुर्हूत बता रहे हैं।
भारत में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति को पूरे भारत में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, किंतु मकर संक्रांति पूरे देश में लोकप्रिय है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल में लोहड़ी, दक्षिण में पोंगल, कर्नाटक में सुग्गी, पूर्वोत्तर भारत में बिहू, उड़ीसा में मकर चैला, बंगाल में पौष संक्रांति, गुजरात व उत्तराखण्ड में उत्तरायणी एवं बुंदेलखण्ड, बिहार और मध्यप्रदेश में सकरात आदि रूपों में इस पर्व को मनाते हैं। इस दिन तिल-गुड़ से बने मीठे व्यंजन, दाल-चावल से बनी खिचड़ी, मूंगफली, गुड़, शक्कर, तिल से बनी रेवड़ी, गज्जक आदि खाने और खिलाने का विधान है। सर्दी में गर्माहट देने वाले पदार्थ प्रयोग करने का जहां तक मतलब समझ में आता है।
वह यही है कि हमारे भीतर नव उर्जा का संचार हो, खिचड़ी आदि में कई प्रथक चीजें मिलाकर एक बनाने का तात्पर्य है कि सब मिलजुल कर एक रहें, स्नान आदि करने का अर्थ है कि सब तन-मन से पवित्र हो जाएं, स्वस्थ रहें, निरोग रहें। मकर संक्रांति पर्व जो कि अत्यंत सर्दी के समय में आता है, जब सर्दी से रोम-रोम कंपायमान हो जाता है, कई-कई दिनों तक छाया कोहरा छंटने का नाम नहीं लेता, आसमान में बादल छा जाते हैं, तब हर व्यक्ति यही कहता है, सूर्य के दर्शन नहीं हुए, कैसे काम चलेगा? कैसे बाहर निकलें?
उस स्थिति में सूर्य की किरणों के निकलने से सब कुछ ठीक हो जाता है, सबकी जान में जान आ जाती है। मन में आशा का नया सवेरा उदय हो जाता है। इस पर्व पर जहां एक तरफ अन्न दान करने का महत्व है, वहीं गरम वस्त्र, स्वेटर-कम्बल आदि भी गरीबों को बांटे जाते हैं। जो ठिठुरे हुए थे, जो सर्दी की मार से बेहाल थे, जो जरूरतमंद लोग थे, जब उनको गर्म वस्त्र मिलते हैं और वे उनका उपयोग करते हैं तब उन्हें ऐसा ही लगता है जैसे सर्दी से सताए हुओं को सूर्य ने ऊष्णता प्रदान की हो।

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