नई दिल्ली। ऑटोमोबाइल और कंपोनेंट सेक्टर में पहले मंदी और फिर कोरोना के कारण तीन सालों में तकरीबन सात लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। इसमें आधे लोग डीलरों, जबकि बाकी आधे को वाहन तथा कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों के यहां काम करते थे।
वर्ष 2018 और 2019 की मंदी के बाद वर्ष 2020 में आई कोरोना की पहली और फिर 2021 की दूसरी लहर ने ऑटोमोबाइल सेक्टर की कमर तोड़ दी है। उत्पादन और बिक्री में भारी गिरावट के परिणामस्वरूप वाहन, उनके कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों और डीलरों को बड़ी संख्या में छटनी को मजबूर होना पड़ा है। कोरोना से पहले दो सालों में मंदी के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर में करीब 3.45 लाख लोग बेरोजगार हुए थे। जबकि उसके बाद कोरोना के कारण इतने ही और लोगों के बेरोजगार होने का अनुमान है।
क्योंकि कोरोना से पहले अगस्त, 2019 में सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर (सियाम) ने मंदी से 2.30 लाख लोगों के बेरोजगार होने की आशंका व्यक्त की थी। जबकि ऑटो कंपोनेंट मैन्यू फैक्चरर्स एसोसिएशन (एक्मा) ने 5 लाख लोगों के नौकरी खोने का अंदेशा जताया था।
मंदी से पहले ऑटोमोबाइल और कंपोनेंट सेक्टर तकरीबन 3.7 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार दे रहा था। जिसमें 13 लाख लोग वाहन कंपनियों में तथा 57 लाख लोग ऑटो कंपोनेंट क्षेत्र में कार्यरत थे। जबकि बाकी इनसे जुड़े डीलरों तथा गैराजों से संबद्ध थे।
ऑटोमोबाइल सेक्टर की मौजूदा हालत के लिए अकेले मंदी और कोरोना को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सरकार की नीतियों ने भी सेक्टर को काफी चोट पहुंचाई है। खासकर पहले बीएस-4 और फिर बाद में सीधे बीएस-6 उत्सर्जन मानक लागू करने का दबाव कंपनियों पर बहुत भारी पड़ा है।
इतना ही नहीं, जब कंपनियां बीएस-6 वाहनों की तैयारी कर ही रही थीं तब सरकार ने अचानक इलेक्ट्रिक वाहनो की मुहिम छेड़ दी। साथ ही पर्यावरण सुधार के नाम पर पेट्रोल व डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने और इन्हें लगातार ग्राहकों की पहुंच से दूर करने की नीति भी अख्तियार कर ली। इसका ग्राहकों की मनःस्थिति पर ऐसा प्रभाव पड़ा की जो लोग लंबे अरसे से नया वाहन खरीदने की सोच रहे थे, उन्हें मन मारकर बैठ जाना पड़ा।
सालाना 8.2 लाख करोड़ रुपये के कारोबार वाले आटोमोबाइल सेक्टर की भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.1 फीसद, औद्योगिक जीडीपी में 27 फीसद तथा मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में 49 फीसद की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियां हर साल तकरीबन 2.6 करोड़ वाहन बेचती हैं। 2.05 लाख करोड़ रुपये के बराबर निर्यात के साथ निर्यात में इस सेक्टर का योगदान 8 फीसद है।
जीएसटी में 15 फीसद योगदान के साथ ऑटोमोबाइल सेक्टर से सरकारी खजाने को सालाना 1.5 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है। इसके अलावा भारतीय ऑटो कंपोनेंट सेक्टर भी 3.95 लाख करोड़ रुपये का है। जीएसटी में 2.3 फीसद योगदान के साथ ये भी 1.06 लाख करोड़ रुपये के बराबर निर्यात करता है।