बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बारे में चर्चा में शामिल हुईं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (08 मार्च) के अवसर पर एक मीडिया कंसल्टिंग फर्म और एक मनोरंजन पत्रकारिता मंच साथ मिलकर ‘ओ वूमनिया:2021′ नामक एक रिपोर्ट लॉन्च करेंगे। इस रिपोर्ट में विभिन्न दृष्टिकोणों से भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व से जुड़े तथ्यों पर विचार किया जाएगा।
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के विभिन्न आयामों में काम कर रहीं पांच महिलाओं के साथ एक गोलमेज चर्चा हुई। इनमें फिल्म अभिनेत्री तापसी पन्नू, अभिनेत्री समांथा अक्किनेनी, पुरस्कार-विजेता फिल्म डायरेक्टर अंजली मेनन, ओरिजिनल फिल्म्स के लिये नेटफ्लिक्स इंडिया की डायरेक्टर सृष्टि बहल आर्या और कीको नाकाहारा शामिल हुयी।
फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा ने इस चर्चा की मेजबानी की। पैनल की सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थीं कि हाल के वर्षों में भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अब भी पुरूष-केन्द्रित इस इंडस्ट्री में इस पर बहुत काम होना बाकी है।
अपने फिल्म कॅरियर के शुरूआती वर्षों के अनुभव के बारे में बताते हुए तापसी पन्नू ने कहा, “एक बार डबिंग के दौरान मुझे मेरे डायलॉग्स बदलने के लिये कहा गया था, क्योंकि हीरो उनमें बदलाव चाहता था। मैंने ऐसा करने से मना कर दिया और उस फिल्म के रिलीज होने के बाद मुझे पता चला कि उन लोगों ने वे डायलॉग्स बदलने के लिये एक डबिंग आर्टिस्ट से काम लिया था।”
महिलाओं के चित्रण में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन निश्चित तौर पर हो रहे बदलाव के बारे में तापसी ने कहा, ‘’ज्यादातर फिल्मों के ट्रेलर ऐसा नैरेटिव बनाते हैं कि यह फिल्म एक पुरूष पर आधारित है, आइये, उसके लिये यह फिल्म देखें। लेकिन मेरी फिल्म पिंक में जब मैंने देखा कि ट्रेलर में श्री बच्चन के जितना मुझे भी तवज्जो दी जा रही है, तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ।‘’
पुरूष और महिला एक्टर्स के पेमेंट में अंतर की बात करते हुए समांथा ने कहा, ‘’यदि आप टॉप 3 हीरोइनों में से एक हैं, तो भी हीरो के मुकाबले आपका पेमेंट बहुत कम होगा, चाहे वह टॉप 20 में भी नहीं आता हो। अगर हीरोइन पेमेंट बढ़ाने के लिये कहती है, तो उसे समस्या मान लिया जाता है। लेकिन अगर हीरो पेमेंट बढ़ाने के लिये कहता है, तो उसे कूल समझा जाता है।‘’
फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कम महिला निर्देशक हैं, इस बारे में अंजली मेनन ने कहा, ‘’भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कम महिला निर्देशक हैं, क्योंकि निवेशकों का उन पर भरोसा नहीं है। महिला निर्देशकों को लेकर लोग आलोचनात्मक और पक्षपातपूर्ण रवैया अपना लेते हैं। उनका मानना होता है कि महिला निर्देशक कुछ खास तरह की फिल्में ही डायरेक्ट कर सकती हैं, जबकि यह धारणा बेबुनियाद है।‘’