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बड़ी कंपनियों के दबाव में उत्पादक मूल्य सूचकांक नहीं ला पाई सरकार

नई दिल्ली। आवश्यक वस्तुओं की महंगाई को काबू में रखने के लिए मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में थोक मूल्य सूचकांक की जगह उत्पादक मूल्य सूचकांक लाने की योजना बनाई थी। लेकिन उत्पादकों के दबाव में वो योजना आज तक फलीभूत नहीं हो सकी है। उलटे बड़ी उत्पादक कंपनियों के दबाव में सरकार ने कानूनो में संशोधन कर किसानो और उपभोक्ताओं के ही हाथ-पैर बांध दिए हैं।

आवश्यक वस्तुओं की मंहगाई पर नियंत्रण रखने के लिए मोदी सरकार ने अगस्त, 2014 में थोक मूल्य सूचकांक ( होलसेल प्राइस इंडेक्स या डब्लूपीआइ) के स्थान पर उत्पादक मूल्य सूचकांक ( प्रोड्यूसर्स प्राइस इंडेक्स अथवा पीपीआइ) लाने का प्रस्ताव किया था।

पीपीआइ की तैयारी के लिए सरकार ने 21 अगस्त, 2014 में राष्ट्रीय सांख्यकी आयोग के पूर्व सदस्य, डॉ. बीएन गोलदार की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया था। कार्यबल ने 31 अगस्त, 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी और इसे आर्थिक सलाहकार की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। लेकिन उत्पादक संगठनों के विरोध के चलते थोक मूल्य सूचकांक को खत्म कर उसकी जगह उत्पादक मूल्य सूचकांक को लागू करने का निर्णय अब तक नहीं लिया जा सका है।

उलटे पीपीआइ को भूलकर सरकार ने 25 जून, 2019 को थोक मूल्य सूचकांक के ही पुनरीक्षण का फैसला ले लिया। और इसका आधार वर्ष बदलने के लिए प्रो. रमेश चांद की अध्यक्षता में एक नए कार्यबल का गठन कर डाला। प्रो. चांद को 25 जून, 2020 को अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। लेकिन किसान आंदोलन और कोरोना के कारण उनका समय एक साल और बढ़ा दिया गया और अब उन्हें इसी महीने की 25 तारीख (25 जून, 2021) को अपनी रिपोर्ट देनी है।

यही नहीं, इस बीच उत्पादक संगठनों के दबाव में आकर सरकार ने संसद से किसान और उपभोक्ता विरोधी कई कानून भी पारित करा लिए। जिनमें कृषि कानून तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून शामिल हैं।

थोक मूल्य सूचकांक पर रिपोर्ट मिलने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय की तकनीकी सलाहकार समिति प्रो. चांद और डॉ. गोलदार के साथ मिलकर थोक मूल्य सूचकांक की जगह उत्पादक मूल्य सूचकांक को लाने के नफा-नुकसान और अड़चनों के बारे में विस्तृत विचार-विमर्श करेगी और सरकार को सिफ़ारिश देगी। तदोपरांत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ही पीपीआइ के बारे में कोई अंतिम फैसला लिया जा सकेगा।

वर्तमान समय में प्रचलित थोक मूल्य सूचकांक की गणना मंडियों में आवश्यक वस्तुओं के थोक भावों के आधार पर की जाती है। जिनमें उत्पादक के यहां से मंडी तक परिवहन का खर्च के साथ आढ़तियों और वितरकों का मुनाफा शामिल होता है। इससे ये पता नहीं चलता है कि उत्पादक के यहां से वस्तु किस कीमत पर बेची गई, वस्तु के उत्पादन पर कितनी लागत आई और उत्पादक ने उस पर कितना मुनाफा कमाया।

परंतु उत्पादक मूल्य सूचकांक इन तथ्यों को उजागर कर देगा। इसके लिए दो तरह के पीपीआइ तैयार किए जाने का प्रस्ताव है। एक, ‘इनपुट पीपीआइ’ जो उत्पादन में आने वाली लागत की सूचना देगा। और दूसरा ‘आउटपुट पीपीआइ’ जिससे उत्पादन के बाद विक्रय के लिए निर्धारित मूल्य का पता चलेगा।

मूल आवश्यक वस्तु अधिनियम, (1955) के अनुसार आवश्यक वस्तुओं की सूची में 7 वस्तुएं आती हैं। इनमें दवाएं, उर्वरक, तिलहन व खाद्य तेल समेत खाद्य उत्पाद, सूती हैंक यार्न, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा जूट और जूट से बने समान तथा अनाज, फल, सब्जियों, पशु चारे, जूट तथा कपास के बीज या बिनौला। कोरोना के कारण इन दिनों लगभग इन सभी वस्तुओं के बढ़ते दाम चिंता का विषय बने हुए हैं।

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