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बोलने की आजादी का हिस्सा है विज्ञापन, लेकिन किसी अन्य ट्रेडमार्क स्वामी की कीमत पर नहीं: अदालत

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वेब यातायात को एक अन्य वेबसाइट पर भेजे जाने की शिकायत के मामले में गूगल से जांच करने को कहा है। अदालत ने कहा कि विज्ञापन ‘बोलने की आजादी’ का हिस्सा है लेकिन यह किसी कंपनी स्वामी के ट्रेडमार्क के मूल्य पर नहीं किया जा सकता और यह भ्रामक इश्तहार के समान है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन के माध्यम से राजस्व अर्जित करने वाली गूगल उसके विज्ञापनदाताओं की त्रुटियों के लिए उतनी ही जिम्मेदार है जो अपने फायदे के लिए ट्रेडमार्क स्वामी की साख को भुना रहे हैं।

अदालत ने कहा कि गूगल की नीति के अनुसार वे कीवर्ड के रूप में ट्रेडमार्क के उपयोग की जांच करते हैं लेकिन यह केवल यूरोपीय संघ तक सीमित है और भारत में इसका पालन नहीं किया जाता। उच्च न्यायालय ने गूगल इंडिया लिमिटेड और गूगल एलएलसी को वादी अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स लिमिटेड की किसी भी शिकायत की जांच करने का निर्देश दिया।

कंपनी ने आरोप लगाया है कि कीवर्ड के रूप में उनके ट्रेडमार्क का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे वादी की वेबसाइट से विज्ञापनदाता की वेबसाइट पर ले जाया जाता है।

न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव ने 137 पन्नों के आदेश में कहा, ”इस बारे में कोई विवाद नहीं हो सकता कि विज्ञापन बोलने की स्वतंत्रता का हिस्सा हैं, लेकिन निश्चित रूप से बोलने की आजादी किसी ट्रेडमार्क स्वामी के ट्रेडमार्क की कीमत पर नहीं हो सकती और यह भ्रामक विज्ञापन के समान है।”

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