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बैसाखी : सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्‍थापना आज के दिन ही की थी

लखनऊ : बैसाखी पर्व का बड़ा महत्‍व है. यह पंजाब, हरियाणा और आसपास के प्रदेशों का प्रमुख त्‍योहार है. इस दौरान रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है. फसल काटने के बाद किसान नए साल का जश्‍न मनाते हैं. यही नहीं बैसाखी के दिन ही 1969 में सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्‍थापना की थी. बैसाखी सिखों के नए साल का पहला दिन है.  इसके अलावा बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसलिए भी इसे त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है. अंगरेजी कैलेंडर के अनुसार हर साल अप्रैल में बैसाखी मनाई जाती है. इस बार यह 14 अप्रैल को है.बैसाखी का महत्‍व 
पंजाब और हरियाणा के अलावा उत्तर भारत में भी बैसाखी के पर्व की बड़ी मान्‍यता है. देश के दूसरे हिस्‍सों में भी बैसाखी को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. बैसाखी एक कृषि पर्व है. पंजाब में जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है जब बैसाखी मनाई जाती है. वहीं, असम में भी इस दौरान किसान फसल काटकर निश्चिंत हो जाते हैं और त्‍योहान मनाते हैं. असम में इस त्‍योहार को बिहू कहा जाता है. वहीं, बंगाल में भी इसे पोइला बैसाख कहते हैं. पोइला बैसाख बंगालियों का नया साल है. केरल में यह त्‍योहार विशु कहलाता है.  बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं.

पंजाब समेत उत्तर भारत के कई हिस्‍सों में बैसाखी धूमधाम से मनाई जाती है. इस दिन पंजाब के लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते हैं. घर के छोटे अपने बड़ों के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं. लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाई देते हें. इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है. घरों में कई तरह के पकवान बनते हैं और पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खाता है. इस मौके पर दोस्‍तों-रिश्‍तेदारों को भी घर बुलाकर दावत दी जाती है. बैसाखी फसल कटाई का त्‍योहार है. इस दिन किसान अच्‍छी फसल के लिए ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते हैं फसल कटाई और नए साल की खुशी में कई जगह मेले भी लगते हैं.
हिंदुओं के लिए बैसाखी पर्व का महात्‍म्‍य है. मान्‍यता है कि हजारों सालों पहले गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं. यही वजह है कि इस दिन धार्मिक नदियों में नहाने का बड़ा महत्‍व है. इस दिन गंगा किनारे जाकर मां गंगा की आरती करना शुभ माना जाता है.

 खालसा पंथ की स्‍थाना 

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में साल 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी. खालसा पंथ की स्‍थापना का मकसद लोगों को तत्‍कालीन मुगल शासकों के अत्‍याचारों से मुक्‍त कर उनके जीवन को श्रेष्‍ठ बनाना था. सिख धर्म के व‍िशेषज्ञों के अनुसार गुरु नानक देव ने आध्‍यात्मिक साधाना की दृष्टि से वैशाख महीने की काफी प्रशंसा की है.

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