बेंगलुरू : विधान सभा चुनाव जीतकर दक्षिण के किले को फतह करने की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की योजना को झटका लग सकता है क्योंकि लिंगायत समुदाय के 220 मठों के संतों ने कल बेंगलुरू में बैठक कर कांग्रेस को चुनावों में समर्थन देने का एलान किया है। अगर मठों के संतों की बात मानकर लिंगायत समुदाय के लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया तो बीजेपी का विजय अभियान न सिर्फ थम सकता है बल्कि उसके लिए मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं। बता दें कि राज्य में करीब 18 फीसदी आबादी लिंगायत समुदाय की है जो परंपरिक तौर पर बीजेपी के वोटर माने जाते रहे हैं लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा चली गई राजनीतिक चाल से बाजी पलटती नजर आ रही है। सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय के धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देते हुए गेंद केंद्र की बीजेपी सरकार के पाले में डाल दिया है।एक दिन पहले ही लिंगायत समुदाय की पहली महिला संत माते महादेवी ने सिद्धारमैया को समर्थन देने का एलान किया था और लोगों से भी कांग्रेस को समर्थन देने की अपील की थी। हाल ही में अमित शाह ने कुछ लिंगायत मठों के संतों से मुलाकात कर लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं देने की बात कही थी। एबीपी न्यूज के मुताबिक, रविवार (08 अप्रैल) को बेंगलुरू के बसवा भवन में लिंगायत मठों के संतों की बैठक हुई जिसमें चित्रदुर्गा के मशहूर मुरुगा मठ के संत मुरुगा राजेंद्र स्वामी, बसवा पीठ के माते महादेवी और सुत्तुर मठ के संत समेत कुल 220 मठों के संत शामिल हुए। सभी ने चर्चा कर एकमत से कांग्रेस की सिद्धारमैया को समर्थन देने का फैसला किया है।
बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी एस येदुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही आते हैं। सिद्धारमैया ने पिछले महीने लिंगायत समुदाय और वीरशैव समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का एलान किया था और कागजी कार्रवाई पूरी कर उसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया है। केंद्र सरकार ने इस बीच कहा है कि इस पर अल्पसंख्यक मंत्रालय फैसला करेगा। हालांकि, वीरशैव समुदाय सिद्धारमैया सरकार के फैसले का विरोध कर रहा है। कर्नाटक में 12 मई को वोट डाले जाएंगे जबकि 15 मई को नतीजे आएंगे।