शिमला: बिहार से चमकी बुखार के बाद लीची को लेकर उड़ी अफवाह की वजह से हिमाचल में भी लोग लीची खरीदने से कतरा रहे हैं। फल मंडियों में अन्य फल तो बिक रहे हैं, लेकिन लीची की मांग में भारी कमी आ गई है। राज्य से सटे पठानकोट, हिमाचल के कांगड़ा, पालमपुर, नाहन और पांवटा आदि क्षेत्रों में लीची की पैदावार ज्यादा होती है। इस पैदावार का हिमाचल ही मुख्य बाजार है, जो लीची सीजन में भी घाटे का सौदा बनता दिखाई दे रहा है। बिहार में चमकी बुखार से सौ से ज्यादा बच्चों की मौत को लीची के सेवन से जोड़कर बताए जाने के बाद प्रदेश में लीची की मांग धड़ाम हो गई है।
आलम ये है कि बाजार में लीची के दाम 120 से घटकर 50 से 60 रुपये पहुंच गए हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इनसेफिलाइटिस सिंड्रोम की वजह से बच्चों की मौत के कारण लीची पर विवाद पैदा हो गया है। खबरों में बताया गया कि लीची के कारण कुपोषित बच्चों की मौत हो गई। इसके बाद राजधानी शिमला में भी लीची की डिमांड घट गई है। शिमला के फल आढ़तियों ने लीची मंगवानी भी बंद कर दी है। हंसराज भाटिया फ्रूट कंपनी के संचालक राकेश भाटिया ने बताया कि पिछले साल तक पालमपुर की लीची की शिमला में खूब डिमांड रहती थी, लेकिन इस बार मार्केट में लीची की डिमांड ही नहीं है।
इसी वजह से पालमपुर से लीची नहीं मंगवाई जा रही। डायमंड फ्रूट कंपनी के संचालक मोहम्मद नदीम ने बताया कि डिमांड कम होने की वजह से नाहन पांवटा से बहुत कम लीची मंगवा रहे हैं। मुश्किल से एक से दो क्विंटल माल खप रहा है। पिछले साल एक दिन में आठ से दस क्विंटल लीची बिकती थी। मधू सूदन फ्रूट सप्लायर के संचालक मोहम्मद इंतजार ने बताया कि पिछले साल एक दिन में पठानकोट और पालमपुर से दो ट्रक माल पहुंचता था। इस साल मांग कम होने से एक ट्रक भी बड़ी मुश्किल से सप्लाई हो रहा है। कई बार तो एक ट्रक माल सप्लाई करने में दो से तीन दिन लग रहे हैं। इतने दिनों में लीची की गुणवत्ता खराब हो जाती है।