लखनऊ : बिहार के नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज(गुरुवार) फिर सुनवाई होगी। 3 लाख 56 हजार नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है। राज्य और केंद्र सरकार इस मामले में अपना पक्ष रख चुके हैं। शिक्षक संगठनों के वकील अपना पक्ष रख रहे हैं।
बेवजह शिक्षकों को परेशान कर रही सरकार-चिदंबरम
बुधवार को सुनवाई के दौरान चिदंबरम ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि बेवजह नियोजित शिक्षकों को परेशान कर रही है। सरकार के पास पैसे की कमी नहीं है। शिक्षा मद की राशि प्रति वर्ष राज्य सरकार द्वारा केंद्र को बिना खर्च किए वापस कर दिया जाता है। इसलिए रुपए की कमी बहाना है। शिक्षक संघ के अन्य वकीलों ने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन नियोजित शिक्षकों का अधिकार है। पटना हाईकोर्ट का नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सही है। राज्य सरकार के एसएलपी को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
केंद्र और राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा – सरकार समान वेतन देने की स्थिति में नहीं
शिक्षक संघों की ओर से कहा गया कि जो भी बहाली हुई एनसीटीई के निर्देश पर हुई थी। माध्यमिक शिक्षक संघों के वकील ने कहा कि 133529 माध्यमिक शिक्षकों और पुस्तकालयाध्यक्षों सहित सभी नियोजित शिक्षकों को समान काम समान वेतन मिलना चाहिए। सी वैद्यनाथन ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का हवाला देकर समान वेतन देने की दलील दी। इसके पहले कई बार केंद्र और राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा था कि समान वेतन देने की आर्थिक स्थिति नहीं है। केंद्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल वेणु गोपाल ने कहा था समान वेतन देने में 1.36 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार को वहन करना संभव नहीं है। राज्य सरकार के वकील ने भी कहा था कि आर्थिक स्थिति नहीं कि 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को पुराने शिक्षकों के बराबर समान वेतन दे सके। समान काम समान वेतन देने पर सरकार को सालाना 28 हजार करोड़ का बोझ पड़ेगा। एरियर देने की स्थिति में 52 हजार करोड़ भार पड़ेगा। जुलाई 2015 से ही शिक्षकों को वेतनमान दिया जा चुका है। 2015 में 14 और 2017 में लगभग 17 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन में बढ़ोतरी भी हुई है।