उत्तराखंडः चमोली जिले के लामबगड़ (गैरसैंण) गांव के जंगल में रविवार को बादल फटने से हाहाकार मच गया। भूस्खलन व भूकंप की दृष्टि से जोन पांच में चमोली जिला सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। ऐसे में कुछ घंटों की बारिश से रविवार को अचानक बादल फटने से चमोली जिले के लोग सहम गए हैं। चारों ओर से भूस्खलन की जद में घिरे लामबगड़ सहित रामगधेरी, बिष्ट बाखली, नेगी बाखली और गंगानगर गांव के लोग सहमे हुए हैं। भूकंप और भूस्खलन की दृष्टि से जोन पांच में रखे गए चमोली जिले में गैरसैंण, कर्णप्रयाग, चमोली और घाट शहरों को संवेदनशील क्षेत्र माना गया है। रिपोर्ट में भी इनको सबसे ज्यादा संवेदनशील बताया गया है। चमोली जिले के करीब 100 किमी परिक्षेत्र में गैरसैंण, कर्णप्रयाग, चमोली, गौचर और घाट के अलावा बदरीनाथ मार्ग पर पंचपुलिया, नौटी से लेकर सिरोली तक का क्षेत्र खड़िया और चिकनी मिट्टी क्षेत्र का बताया जाता है। भूगोलवेत्ता डॉ. जेएस कंडारी ने अपनी किताब में बताया है कि नदी, बगड़ों के रूप में संप्राय भूभाग वाले क्षेत्रों में कर्णप्रयाग, श्रीनगर, मलेथा, स्यूंसी, सतपुुली, पाटीसैंण, सोमेश्वर और चौखुटिया आदि हैं। इन क्षेत्रों में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं। भूगोलवेत्ता डॉ. राकेश गैरोला और डॉ. कमलेश कुंवर कहते हैं कि संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र ढीली अवसाद चट्टानों से निर्मित है। उन्होंने कहा कि वह पहाड़ी क्षेत्र सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं, जहां खड़िया मिट्टी सबसे अधिक है। सामान्य से अधिक बारिश व झाड़ी से लेकर बड़े पेड़ों के अभाव वाले क्षेत्र में भूस्खलन की सबसे ज्यादा संभावना होती है। इन क्षेत्रों में झाड़ियां और बड़े पेड़ कम मात्रा में हैं जो पानी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बादल फटने से मचा हाहाकार, भूस्खलन व भूकंप की दृष्टि से जोन 5 में चमोली जिला सबसे ज्यादा संवेदनशील
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