सैफ अली खान स्टारर मोस्ट अवेटेड फिल्म लाल कप्तान धोखे और वीरता के की कहानी है। ये फिल्म आपको इतिहास की उस यात्रा पर ले जाती है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में तेजी से प्रगति कर रही थी। वह लोगों को खरीद रही थी और मुगलों, रोहिलों, मराठों को धमका रही थी, जिससे भारत पर कंट्रोल किया जा सके। डायरेक्टर नवदीप सिंह और दीपक वेंकटेश की यह एक बेहतरीन कहानी है। दुर्भाग्य से जब तक कहानी स्टोरीबोर्ड से फिल्म पर चलती है तब तक वह ट्रांसलेशन खो देती है और कंफ्यूज कर देती है। अक्टूबर 1764 में हुई बक्सर की लड़ाई के कुछ समय बाद, फिल्म में हम स्ट्रेंज और बदले की भावना से भरे हुए गोसाईं, एक नागा साधु (सैफ अली खान) की एंट्री होती है।
शुरुआत में उसके द्वारा कुछ मर्डर्स किए जाते हैं और जल्द ही हम उन्हें एक पठान सरदार रहमत खान (मानव विज) का पीछा करते हुए बुंदेलखंड के इलाके में पाते हैं। सरदार, अपने वफादार जनरल (अमीर बशीर) के अलावा उसकी बेगम (सिमोन सिंह) एक बच्चे और एक विधवा मिस्त्री वूमेन (जोया हुसैन) के साथ है। गोसाईं की जिंदगी का मकसद ही रहमत खान से बदला लेना है। फ्लैशबैक में जाने से पता चलता है कि रहमत खान की वजह से एक बच्चे और उसके पिता को फांसी पर लटका दिया गया था। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, गोसाईं और कारनामों के आसपास की परतें हटने लगती हैं। सैफ अली खान इससे पहले भी कई अजीब कैरेक्टर्स कर चुके हैं, चाहे गो गोवा गॉन में उनका रसियन लुक हो या ओमकारा में लंगड़ा त्यागी की उनकी भूमिका, वह अपने इन अवतारों से ऑडिएंस को प्रभावित करने से पीछे नहीं रहते। धूल भरे बुंदेलखंड के इलाकों, पहाड़ों, ढेर सारी मार-काट और खून-खराबे के बाद भी दर्शक बोर होने लगते हैं। सैफ के अलावा इस फिल्म में कॉमिक रोल करने वाला एक खबरी (दीपक डोबरियाल) भी है, जो पैसों के लिए सूंघकर जासूसी करता है। वहीं, एक विधवा मिस्ट्री वुमन (जोया हुसैन) भी है, जिसकी अपनी ट्रैजिडी है। ओवरऑल डायरेक्टर नवदीप सिंह ने एक पीरियड ड्रामा बनाने की भरपूर कोशिश की है, लेकिन फिल्म में कोई ट्विस्ट और टर्न्स नहीं दिखते। एक तो ये फिल्म धीमी गति से आगे बढ़ती है, इसलिए ढाई घंटे इसको झेलना मुश्किल हो जाता है। ऐसा लगता है।
फिल्म की लंबाई थोड़ा कम होती, तो यह ज्यादा इफेक्टिव हो सकती थी। फिल्म के गाने भी एक बार सुनने लायक हैं। सैफ ने फिल्म में शानदार काम किया है, उनकी आंखों में बदले की भावना और चेहरे पर धोखे की आग दिखती है। पूरे शरीर पर भभूत लगाकर उन्होंने अपनी नागा साधु की भूमिका से न्याय किया है। मानव विज का काम भी ठीक ठाक है। स्क्रीन पर जब-जब दीपक डोबरियाल आते हैं, तब थोड़ा आराम मिलता है। जोया हुसैन ने भी फिल्म में अच्छा काम किया है।। शंकर रमन की सिनेमेटोग्राफी के अलावा किरदारों की कॉस्ट्यूम भी फिल्म में अहम भूमिका निभाते हैं। इससे पहले सैफ के लुक को लेकर भी कॉन्ट्रोवर्सी हुई थी। जिसमें कहा गया था कि उनका लुक पाइरेट्स ऑफ करैबियन के जैक स्पैरो से मैच कर रहा है।