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पृथ्वी गोल है : लालू यादव को फ़साने एवं जगन्नाथ मिश्रा को बचाने वाले आईपीएस राकेश अस्थाना आज खुद शिकंजे में

नई दिल्ली / लखनऊ : 23 वर्ष की उम्र में ही आइपीएस बन गए थे राकेश अस्थाना . नौकरी के दौरान राजनीतिक रूप से रसूखदार हस्तियों के खिलाफ जांचों और उन्हें जेल भिजवाने के चलते जहां हमेशा चर्चा में रहे, वहीं विवादों में भी घिरते रहे. ताजा विवाद हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी मोइन कुरैशी केस में कथित रूप से दो करोड़ रुपये  घूस लेने के आरोपों से जुड़ा है. इस केस में सीबीआई डायरेक्टर के निर्देश पर उनके खिलाफ केस दर्ज होने के बाद से सीबीआई में घमासान मचा हुआ है. इसी बहाने इस अफसर के करियर पर नजर डालना भी मौजू हो उठता है.पारिवारिक पृष्ठिभूमि और शिक्षा-दीक्षा की बात करें तो 1961 में रांची में पैदा हुए. झारखंड के नेतरहाट स्कूल से शुरुआती पढ़ाई-लिखाई हुई. पिता शिक्षक रहे. सेंट जेवियर्स कॉलेज से माध्यमिक स्तर की शिक्षा लिए. फिर दिल्ली पहुंचे. जेएनयू से पढ़ाई की. इसके बाद संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करने लगे. पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा में बाजी मारी. आईपीएस बने और 1984 में गुजरात काडर मिला

आइपीएस की नौकरी करते तब राकेश अस्थाना को करीब 12 साल हुए थे, जब उन्हें एक ऐसा केस मिला, जिसने उन्हें रातोंरात सुर्खियों में ला दिया. यह केस था बिहार में हुए बहुचर्चित चारा घोटाले का. यह घोटाला उस वक्त जगन्नात मिश्रा और लालू यादव के मुख्यमंत्री रहते हुआ था. कहा जाता है कि बिहार में मुख्यमंत्री रहते हुए लालू यादव के रसूख के आगे जब कई अफसर इस केस को हाथ लगाने से डरते थे, तब उस वक्त सीबीआई में एसपी रहे राकेश अस्थाना  ने इस केस को चुनौती के तौर पर लिया और 1996 में लालू यादव के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी. मुख्यमंत्री होने पर भी लालू यादव से एक, दो नहीं छह-छह घंटे बैठाकर राकेश अस्थाना ने पूछताछ की. कहते हैं कि अब से करीब चार साल पहले ही रिटायर हुए सीबीआई के एक बड़े अफसर उस वक्त लालू यादव के करीबियों में शुमार थे और वह लालू यादव से इस तरह के पूछताछ के खिलाफ थे. मगर उस वक्त उस अफसर के मातहत रहे राकेश अस्थाना ने इसकी कोई परवाह नहीं की और लालू यादव के खिलाफ जबरदस्ती केस को अंजाम दिलाकर ही माने. और जबरदस्ती मनमाने तरीके से लालू यादव को फंसा दिया लेकिन जगन्नाथ मिश्रा को बचाने में उन्होंने सवर्ण और पिछड़ों वाले अन्तर को बरक़रार रखा।

आखिरकार पहली बार लालू यादव को 1997 में जेल जाना पड़ा. तब उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर पत्नी राबड़ी को बैठा दिया था. 36 साल की उम्र में चारा घोटाले में लालू यादव को जेल भिजवाने के बाद राकेश अस्थाना की गिनती सवर्णों में तेजतर्रार अफसरों में होने लगी.  धनबाद में जब राकेश अस्थाना भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में एसपी थे तो उन्होंने वहां के डीजीएमएस  को घूस लेते गिरफ्तार किया. इस रैंक के अफसर के घूस लेते पकड़े जाने का यह पहला मामला था.

साल 2002, फरवरी की गुलाबी ठंड थी, जब साबरमती ट्रेन जलाने की वारदात हुई. फिर गोधरा दंगा भड़का तो सैकड़ों जानें गईं. उस वक्त दंगे की जांच के लिए गठित हुई स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम(एसआइटी) का राकेश अस्थाना ने नेतृत्व किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक एसआइटी ने कोर्ट में कहा था कि कारसेवकों से भरी ट्रेन को सुनियोजित तरीके से आग के हवाले किया गया.  गोधरा कांड की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में राकेश ने जांच की. इस दौरान उन पर बीजेपी सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे. 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में बम धमाका हुआ. इस केस की 22 दिनों में ही जांच निपटाकर चार्जशीट पेश कर दी.  यही नहीं जब आश्रम की बालिका से रेप के मामले में आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण साई फंसे तो इस केस की जांच कर भी राकेश अस्थाना ने अंजाम तक पहुंचाया. गोधरा कांड की जांच के समय से ही विपक्ष मोदी और शाह का नजदीकी होने का आरोप लगाता रहा. हाल में सीबीआई डायरेक्टर के साथ विवाद के बाद राहुल गांधी ने उन्हें पीएम मोदी का चहेता और उनकी नीली आंखों वाला लड़का तक करार दे दिया. 

आईपीएस राकेश अस्थाना अपने काम की वजह से जितना सुर्खियों में रहे हैं, उतना ही विवादों में भी घिरते रहे हैं. सबसे पहले राकेश अस्थाना विवादों में तब फंसे, जब 2011 में स्टर्लिंग बॉयोटेक कंपनी के यहां छापेमारी के दौरान सीबीआई को एक डायरी मिली थी, जिसमें कई हस्तियों के नाम और उनके सामने रकम का ब्यौरा था. कथित तौर पर उसमें राकेश अस्थाना का नाम होने की बात कही गई और करीब तीन करोड़ रुपये धनराशि का जिक्र मिला था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डायरी के आधार पर बाद में सीबीआई ने कंपनी के प्रमोटर्स के खिलाफ केस दायर किए थे, हालांकि आईपीएस राकेश अस्थाना का नाम एफआईआर में नहीं था.

इसके बाद जब राकेश अस्थाना सीबीआई में स्पेशल डायरेक्टर की नियुक्ति पर सवाल उठे. बाद में जब उन्हें कुछ समय के लिए निदेशक का भी अतिरिक्त कार्यभार मिला तो  एनजीओ कॉमन कॉज ने उनकी सीबीआई में नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में दरवाजा खटखटाया था. कहा था कि 2011 के स्टरलिंग बॉयोटेक में छापे के दौरान बरामद डायरी में राकेश अस्थाना का नाम सामने आया था. इस कंपनी के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग मामले में जांच चल रही थी. भले इस मामले में अस्थाना के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं हुआ, मगर जांच एजेंसी के रडार पर वह आ गए थे. लिहाजा उन्हें निदेशक नहीं बनाया जाना चाहिए. बहरहाल, बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया  वाली नियुक्ति कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई का नया चीफ नियुक्त किया. मगर राकेश अस्थाना और सीबीआई के चीफ आलोक वर्मा में मतभेद अब खुलकर सामने आ गए हैं. क्या अब सीबीआई भरोसे लायक बची है ? इसका प्रयोग केवल सरकार विरोधी एवं ऐसे पिछड़े नेता जो जन मानस के पटल पर छाये रहते हैं उन्हें बदनाम करने के लिए किया जाता है। कुछ समय बाद मामला इनके आकाओं के द्वारा

समाप्त करवा दिया जायेगा। #भारत तेरी यही कहानी @

 

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