सोनभद्र। करीब 42 डिग्री का तापमान, दोपहर के समय। स्थान नक्सल प्रभावित नगवां ब्लाक का बांकी गांव। 817 मतदाताओं में से 450 वोट पड़े चुके थे, करीब 30 महिला-पुरुष बूथ के बाहर पेड़ की छांव में बैठी रहीं। यहां टेंट आदि की व्यवस्था नहीं रही लेकिन कतार में खड़े और बैठे मतदाताओं में उत्साह दिखा। हर किसी के हाथ में मतदाता पर्ची और एक पहचान पत्र था। इस चिलचिलाती धूप में पेड़ की हल्की छांव मिल रही थी तो कुछ मतदाता उसी पेड़ के नीचे जाकर बैठे और अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए। यानि यहां मतदान की स्थिति देखकर हर किसी के मुंह के निकल पड़ा कि यही है लोकतंत्र का उत्सव।
जी हां, यह गांव शहर का नहीं, न ही कोई आदर्श बूथ है। यह बूथ है पूर्व नक्सली मेवालाल खरवार के गांव का। जिस गांव में कभी नक्सलियों की गोलियां तड़तड़ाती थीं, हर समय गांव के सामान्य लोग दहशत के साए में रहते थे। उस गांव में रविवार को मतदान का यह स्तर देखकर हर किसी को सुखद आश्चर्य हो रहा था। बिहार बार्डर से महज तीन किमी पहले बांकी गांव में महज एक ही बूथ बनाया गया था। बावजूद इसके मतदान को लेकर मतदाता इस कदर उत्साहित थे। ऐसी कतार लगी कि वह शाम चार बजे तक नहीं टूटी। आलम यह था कि जिस समय जिले के ज्यादातर बूथों पर सन्नाटा था उस समय भी यहां करीब 30 मतदाता कतार में थे। उधर, नक्सल संगठन का पूर्व एरिया कमांडर मेवालाल खरवार मतदाताओं को प्रेरित करके बूथ तक लाने में लगा रहा। बता दें कि मेवालाल खरवार नक्सल गतिविधि को छोड़ अब समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुका है।