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पितृ पक्ष की आज से शुरुआत ,जाने पूजा की विधि समय कैसे मानते है इसे,पौराणिक कथा का महत्व

लखनऊ : पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध (Shradh) किया जाता है. मान्‍यता है कि अगर पितर नाराज हो जाएं तो व्‍यक्ति का जीवन भी खुशहाल नहीं रहता और उसे कई तरह की समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है. यही नहीं घर में अशांति फैलती है और व्‍यापार व गृहस्‍थी में भी हानि झेलनी पड़ती है. ऐसे में पितरों को तृप्‍त करना और उनकी आत्‍मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है. श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान (Pind Daan) व तर्पण (Tarpan) कर उनकी आत्‍मा की शांति की कामना की जाती है.

हिन्‍दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्‍व है. हिन्‍दू धर्म को मानने वाले लोगों में मृत्‍यु के बाद मृत व्‍यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है. मान्‍यता है कि अगर श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्‍यक्ति की आत्‍मा को मुक्ति नहीं मिलती है. वहीं कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्‍न होते हैं और उनकी आत्‍मा को शांति मिलती है. मान्‍यता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्‍त कर देते हैं. इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्‍मा दुखी हो जाती है.
पितृ पक्ष कब है ?
हिन्‍दू कैलेंडर के मुताबिक पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं. इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि समाप्ति अमावस्या पर होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक हर साल सितंबर महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत होती है. आमतौर पर पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है, लेकिन इस साल तिथि के घटने से ये एक दिन कम हो गए हैं. इस बार पितृ पक्ष 15 दिनों के होंगे. इस बार पितृ पक्ष 24 सितंबर से शुरू होकर 8 अक्टूबर को खत्म होंगे.

जानिए श्राद्ध की तिथियां
24 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध , 25 सितंबर- प्रतिपदा, 26 सितंबर- द्वितीया, 27 सितंबर- तृतीया, 28 सितंबर- चतुर्थी, 29 सितंबर- पंचमी, महा भरणी, 30 सितंबर- षष्ठी, 1 अक्टूबर- सप्तमी, 2 अक्टूबर- अष्टमी, 3 अक्टूबर- नवमी, 4 अक्टूबर- दशमी, 5 अक्टूबर- एकादशी, 6 अक्टूबर- द्वादशी, 7 अक्टूबर- त्रयोदशी, चतुर्दशी, मघा श्राद्ध, 8 अक्टूबर- सर्वपित्र अमावस्या.

पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध?
दिवंगत परिजन की मृत्‍यु की तिथ‍ि में ही श्राद्ध किया जाता है. यानी कि अगर परिजन की मृत्‍यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए. आमतौर पर पितृ पक्ष में इस तरह श्राद्ध की तिथ‍ि का चयन किया जाता है:
– जिन परिजनों की अकाल मृत्‍यु या किसी दुर्घटना या आत्‍महत्‍या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है. श्राद्ध कैसे करें?
– श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें.
– श्राद्ध करने के लिए आप किसी विद्वान पुरोहित को बुला सकते हैं.
– श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार अच्‍छा खाना बनाएं.
– खासतौर से आप जिस व्‍यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं.
– खाने में लहसुन-प्‍याज का इस्‍तेमाल न करें.
– मान्‍यता है कि श्राद्ध के दिन स्‍मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्‍त हो जाते हैं.
– इस दौरान पंचबलि भी दी जाती है.
– शास्‍त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि.
– यहां पर बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्‍या से नहीं बल्‍कि श्राद्ध के दौरान इन सभी को खाना खिलाया जाता है.
– तर्पण और पिंड दान करने के बाद पुरोहित या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें.
– ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्‍ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल हैं.
– ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्‍यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे.
– इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें.

पढ़े पितृ पक्ष कीपौराणिक कथा
पितृ पक्ष की पौराणिक कथा के अनुसार जोगे और भोगे नाम के दो भाई थे. दोनों अलग-अलग रहते थे. जोगे अमीर था और भोगे गरीब. दोनों भाइयों में तो प्रेम था लेकिन जोगे की पत्‍नी को धन का बहुत अभिमान था. वहीं, भोगे की पत्‍नी बड़ी सरल और सहृदय थी. पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्‍नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे उसे बेकार की बात समझकर टालने की कोशिश करने लगा. पत्‍नी को लगता था कि अगर श्राद्ध नहीं किया गया तो लोग बातें बनाएंगे. उसने सोचा कि अपने मायके के लोगों को दावत पर बुलाने और लोगों को शान दिखाने का यह सही अवसर है. फिर उसने जोगे से कहा, ‘आप ऐसा शायद मेरी परेशानी की वजह से बोल रहे हैं. मुझे कोई परेशानी नहीं होगी. मैं भोगे की पत्‍नी को बुला लूंगी और हम दोनों मिलकर सारा काप निपटा लेंगे.’ इसके बाद उसने जोगे को अपने मायके न्‍यौता देने के लिए भेज दिया.

अगले दिन भोगे की पत्‍नी ने जोगे के घर जाकर सारा काम किया. रसोई तैयार करके कई पकवान बनाए. काम निपटाने के बाद वह अपने घर आ गई. उसे भी पितरों का तर्पण करना था. दोपहर को पितर भूमि पर उतरे. पहले वह जोगे के घर गए. वहां उन्‍होंने देखा कि जोगे के ससुराल वाले भोजन करने में जुटे हुए हैं. बड़े दुखी होकर फिर वो भोगे के घर गए. वहां पितरों के नाम पर ‘अगियारी’ दे दी गई थी. पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे. थोड़ी ही देर में
सारे पितर इकट्ठा हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे. जोगे-भोगे के पितरों ने आपबीती सुनाई. फिर वे सोचने लगे कि अगर भोगे सामर्थ्‍यवान होता तो उन्‍हें भूखा न रहना पड़ता. भोगे के घर पर दो जून की रोटी भी नहीं थी. यही सब सोचकर पितरों को उन पर दया आ गई. अचानक वे नाच-नाच कर कहने लगे- ‘भोगे के घर धन हो जाए, भोगे के घर धन हो जाए.’

शाम हो गई. भोगे के बच्‍चों को भी खाने के लिए कुछ नहीं मिला था. बच्‍चों ने मां से कहा कि भूख लगी है. मां ने बच्‍चों को टालने के लिए कहा, ‘जाओ! आंगन में आंच पर बर्तन रखा है. उसे खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना.’ बच्‍चे वहां गए तो देखते हैं कि बर्तन मोहरों से भरा पड़ा है. उन्‍होंने मां के पास जाकर सारी बात बताई. आंगन में आकर जब भोगे की पत्‍नी ने यह सब देखा तो वह हैरान रह गई. इस तरह भोगे अमीर हो गया, लेकिन उसने घमंड नहीं किया. अगले साल फिर पितर पक्ष आया. श्राद्ध के दिन भोगे की पत्‍नी ने छप्‍पन भोग तैयार किया. ब्राहम्णों को बुलाकर श्राद्ध किया, भोजन कराया और दक्षिणा दी. जेठ-जेठानी को सोने के बर्तनों में भोजन कराया. यह सब देख पितर बड़े प्रसन्‍न और तृप्‍त हो गए.

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