लखनऊ : पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने 12 साल पहले पदोन्नति में आरक्षण पर दिए फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इसपर फिर से विचार करने की जरूरत और आंकड़ें जुटाने की आवश्यकता नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 2006 में नागराज मामले में दिए गए उस फैसले को सात सदस्यों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है, जिसमें अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया। इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल थे। इस मामले में केंद्र सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ ने कहा कि एससी/एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को एससी/एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आंकड़ा इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं है।
हालांकि पीठ ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो पदोन्नति में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे।
बता दें कि न्यायालय ने यह फैसला उन याचिकाओं के आधार पर सुनाया, जिसमें कहा गया था कि नागराज प्रकरण में संविधान पीठ के 2006 के फैसले को फिर से विचार के लिये सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जाये। दरअसल, नागराज प्रकरण में संविधान पीठ ने एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिए जाने के लिए शर्तें तय की थीं।
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विभिन्न आधारों पर इस फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। इसमें एक आधार यह था कि एससी-एसटी समुदाय के लोगों को पिछड़ा माना जाता है और जाति को लेकर उनकी स्थिति पर विचार करते हुए उन्हें नौकरियों में पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने कहा था कि एम. नागराज मामले में एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिए जाने में गैर-जरूरी शर्तें लगाई गई थीं। इसलिए केंद्र ने इस पर फिर से विचार करने के लिए इसे बड़ी पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था।
केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के पक्ष में दलीलें देते हुए कहा था कि पिछड़ेपन की धारणा उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा था कि एससी-एसटी समुदाय लंबे समय से जातिगत भेदभाव का सामना कर रहा है और इस तथ्य के बाद भी जाति का कलंक उनसे जुड़ा हुआ है कि इस समुदाय के कुछ लोग अच्छी स्थिति में पहुंचे हैं।