लखनऊ : अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार का रवैया नौजवानों के प्रति दुर्भावना पूर्ण है। नौजवानों की रोजी-रोटी की उसे कोई चिंता नही है। उसको सिर्फ मुद्रा, स्टार्टअप, स्किल इण्डिया और डिजीटल इण्डिया आदि के नारों से बहकाया जा रहा है। युवा पीढ़ी भाजपा की कुनौतियों की शिकार बनाई जा रही हैं।
पिछले महीने पूरे देश में स्नातक स्तर की एस0एस0सी0 परीक्षा में पेपर लीक के आधार पर सरकार के नौकरी के प्रति हीला-हवाली वाले रवैये को समझा जा सकता है। छात्रों ने जब दिल्ली में एसएससी दफ्तर पर धरना प्रदर्शन किया तो मजबूरन केन्द्र सरकार को सीबीआई जांच की मांग को मानना पड़ा। छात्रों-नौजवानों को रोजगार देने की दिशा में वर्तमान केन्द्र सरकार का रवैया बेहद निराशा जनक और नकारात्मक है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी बेरोजगारों को लेकर सरकार का रवैया पूरी तरह संवेदन शून्य तथा उपेक्षापूर्ण बना हुआ है।
अखिलेश यादव ने कहा है कि सन् 2014 में केन्द्र की भाजपा सरकार आने के बाद शिक्षा और रोजगार पर हमला तेजी से बढ़ा है। दो करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष देने का वादा करके सत्ता में आयी केन्द्र की भाजपा सरकार ने केवल नौजवानों और छात्रों को गुमराह किया है। जहां एक ओर सरकारी पदों में हो रही है वही दूसरी ओर नये अवसर सृजित नही किये जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में पी एच-डी , एम फिल के कोर्स में अनुसूचित जाति/जनजाति का जो विभागीय कोटा निर्धारित था उसे समाप्त कर दिया गया है। छात्र-छात्राओं को समय से स्कालरशिप न मिलने की शिकायते हैं। उनके हांस्टलों की दशा दयनीय है। इससे दलित-वंचित वर्ग के लिए उच्च षिक्षा के द्वार काफी हद तक बंद हो जाएगें। मंडल कमीशन की सिफारिशों को भी ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। सरकारी भर्तियों और संविदा नियुक्तियों में आरक्षण का कोई पालन नहीं किया जा रहा है।
सरकारी आकड़ो के अनुसार वर्ष 2014 से 2018 के बीच 26 हजार 5 सौ युवा बेरोजगारों ने आत्महत्या कर ली। नौजवानों का इतनी बड़ी संख्या में मौत को गले लगाना आजाद भारत के लोकतंत्र पर शर्मनाक दाग है। भाजपा सरकार इसके दोष से बच नही सकती है। भाजपा की कुनीतियों के चलते ही देश की युवा पीढ़ी अंधेरे के गर्त में जा रही है। यह घोर निराशा जनक स्थिति है कि बिना किसी उपयोगी अवसर को प्रदान किये युवा पीढ़ी का समय बर्बाद किया जा रहा है। देश में 60 प्रतिशत से अधिक आबादी नौजवानों की है जिनको राष्ट्र निर्माण की भूमिका से वंचित रखना कहां का राष्ट्रवाद है ?
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