नई दिल्ली: भारत में 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी का ऐलान होने के बाद इकोनॉमिक एक्टिविटी को झटका लगा था, लेकिन 2017 की गर्मियों तक उस घटना का असर काफी कम हो गया था। यह बात अमरीका के नैशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने एक वर्किंग पेपर में कही है। ‘कैश एंड द इकोनॉमी एविडेंस फ्रॉम इंडियाज डिमॉनेटाइजेशन’ शीर्षक वाले वर्किंग पेपर में कहा गया, ‘‘हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि नोटबंदी ने उस तिमाही में इकोनॉमिक एक्टिविटी की ग्रोथ रेट कम से कम 2 प्रतिशत प्वाइंट्स घटा दी थी।’’ इस पेपर में कहा गया कि नवम्बर से दिसम्बर 2016 के बीच भारत की इकोनॉमिक एक्टिविटी केवल 3 प्रतिशत प्वाइंट्स या इससे ज्यादा कम हो गई थी, हालांकि इसका असर अगले कुछ महीनों में दिखा था। पेपर में इस कदम के कुछ लंबी अवधि में दिख सकने वाले प्रभावों की बात भी की गई।
इस कदम के चलते सर्कुलेशन में रही करंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा वापस ले लिया गया था। पेपर में कहा गया, ‘‘हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि काफी विकसित फाइनेंशियल मार्केट्स का दर्जा तो उनकी कैशलैस लिमिट से अच्छी तरह तय किया जा सकता है, लेकिन मॉडर्न इंडिया में इकोनॉमिक एक्टिविटी में मदद देने में कैश की जरूरी भूमिका बनी हुई है।’’ यह पेपर गैब्रिएल कोडोरो रीख और गीता गोपीनाथ ने लिखा है। दोनों ही हार्वर्ड यूनिवघ्सटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमैंट में प्रोफैसर हैं। इसमें गोल्डमैन सॉक्स, मुम्बई में कार्यरत इसकी ग्लोबल मैक्रो रिसर्च की एम.डी. प्राची मिश्रा और आर.बी.आई. के अभिनव नारायणन ने भी योगदान दिया है। पेपर में कहा गया कि नोटबंदी से लंबी अवधि में फायदे हो सकते हैं। टैक्स कलेक्शन बढ़ सकता है और सेविंग्स फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट की ओर शिफ्ट हो सकती हैं। इसके अलावा नॉन-कैश पेमैंट मैकेनिज्म को बढ़ावा मिल सकता है।