नई दिल्ली: प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) ने अब जनता से जुड़े सवालों को लेकर सड़कों पर उतरने का फैसला किया है। पार्टी के अनुषांगिक संगठनों के राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्षों की बुधवार को यहां पार्टी कार्यालय में हुई बैठक में अपने दम पर सियासी विकल्प तैयार करने का संकल्प दोहराया गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने फिर स्पष्ट किया कि अफवाहों पर ध्यान न दें, प्रसपा का न तो किसी से गठबंधन होने जा रहा है और न किसी पार्टी में विलय। उन्होंने कहा कि वह नेताजी की राह पर समाजवादी धारा की राजनीति को ताकतवर बनाने का संकल्प लेकर काम करेंगे। राष्ट्रीय महासचिव आदित्य यादव के प्रस्ताव पर अनुषांगिक संगठनों को फिलहाल भंग न करने का फैसला किया गया।
अपनी जमीन मजबूत बनाने जुटी प्रसपा सदस्यता अभियान चलाएगी और कार्यकर्ताओं के लिए जिलों में प्रशिक्षण शिविर लगाएगी। जानकारी के मुताबिक, बैठक में शिवपाल ने सभी का उत्साह बढ़ाया कि लोकसभा चुनाव के नतीजों से हताश होने की जरूरत नहीं है। राजनीति में जितनी बड़ी हार होती है आगे उतनी बड़ी जीत भी मिलती है। उत्साह की बात है कि प्रसपा प्रत्याशी 11 राज्यों में चुनाव लड़े और वहां समर्थन मिला। उनका लक्ष्य 2022 का विधानसभा चुनाव है। शिवपाल ने कहा कि उनकी लड़ाई डॉ. राममनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह और नेताजी मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत बचाने की है।
सूत्रों के अनुसार, मुलायम सिंह के करीबी पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ल ने कहा कि उन्होंने चौधरी चरण सिंह के निर्देशन में राजनीति शुरू की पर, जब अजित सिंह पिता चौधरी साहब की विरासत संभाल नहीं पाए तो मुलायम सिंह के साथ आ गए। जब नेताजी की विरासत उनके पुत्र अखिलेश यादव नहीं संभाल पाए तो वह शिवपाल सिंह के साथ आ गए। शिवपाल सिंह ने कहा कि कार्यकर्ताओं को लोगों के बीच जाकर समझाना चाहिए कि समाजवाद ही असली राष्ट्रवाद है।
भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात करती है वह संप्रदायवाद है। राष्ट्रवाद का मतलब जाति, धर्म या अन्य किसी आधार पर अपने हितों की चिंता करने के बजाय देश के सम्मान, स्वाभिमान और पहचान की चिंता है। प्रसपा के ही प्रयासों से संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सोशल मीडिया पर हिंदी में भी सक्रियता बढ़ाई है। बैठक को प्रवक्ता दीपक मिश्र, प्रमुख महासचिव चक्रपाणि यादव ने भी संबोधित किया। इस दौरान शिक्षक सभा के रवि यादव, बौद्धिक सभा के दीपक राय, यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष शैलेंद्र गुप्त समेत कई अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारी मौजूद रहे।