अशोक यादव / लखनऊ : द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा [ वर्तमान में म्यानमार ] में लड़ने वाली भारतीय सेना की टुकड़ियों के अदम्य साहस और लोकाचार को स्मरण करने के लिये, भारतीय सेना द्वारा चिंडिट अभियान दिनांक 16 फरवरी से 08 मार्च 2018 तक आयोजित किया जा रहा है । दक्षिणी कमान के जनरल आॅफीसर कमांडिंग-इन-चीफ ले0 जनरल डीआर सोनी द्वारा 16 फरवरी 2018 को बबीना में अभियान का शुभारम्भ किया गया। Boldest Measures Are The Safest अर्थात निर्भीक निर्णय सबसे ज्यादा सुरक्षित है इस चिंडिट के घोष वाक्य को आत्मसात करने के लिए अभियान दल को ले0 जनरल डीआर सोनी द्वारा प्रोत्साहित किया गया ।
इस अभियान में 20 दिनों के समय में, चार चरणों में 400 किलोमीटर की दूरी जंगल के रास्ते, सिर्फ जंगल में उपलब्ध खान-पान की चीजों पर
गुजारा करते हुए तथा किसी भी तरह की आधुनिक सुख सुविधाओं के बिना तय करके चिंडिट का वास्तविक अनुभव फिर से याद दिलाया जायेगा। कैंप्टन सचित शर्मा के नेतृत्व में प्रत्येक चरण में 25 सैनिकों की एक टुकडी़ भाग लेगी। इस अभियान में देवगढ़, शादपुर, दमोह और नोरादेही के इलाकों को सम्मिलित किया जायेगा और अभियान में स्थानीय नागरिक प्रशासन और वन विभाग के सहयोग से, उस इलाके के मूल निवासी, जन-जाति के लिए राष्ट्रीय एकता का संदेश फैलाया जायेगा तथा उनकी सुविधा के लिये चिकित्सा शिविर भी लगवाये जायेंगे ।
सम्बन्धित जानकारी देते हुए मध्य कमान की प्रवक्ता गार्गी मालिक सिन्हा ने बताया कि चिंडिट नाम से जानी जाने वाली गुरिल्ला सेना को बर्मा में [ वर्तमान में म्यानमार ] जापानी सेना के खिलाफ लड़ने के उद्देश्य से 1943 के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अंग्रेजों द्वारा मध्य भारत का सुदूर एवं दुर्गम क्षेत्र, विशेष रूप से चुना गया था । प्रशिक्षण को, मुख्य तौर पर भारतीय सेना की गोरखा टुकडियों के लिए, नर्मदा एवं बेतवा नदी की घाटी के बीच के दूर्गम जंगल और पहाडी़ इलाके में महान जनरल आर्दे विनगेट के नेतृत्व में चलाया गया था । चिंडिट सेना द्वारा किये गये आॅपरेशन जापानी सेना के मनोबल तोड़ने के लिये तथा उन्हें उनकी अंतिम हार की तरफ अग्रेसर करने में निर्णायक थे ।