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दो राज्यों के मुख्यमन्त्री रह चुके नारायण दत्त तिवारी का दिल्ली के मैक्स अस्पताल में 93 वर्ष की उम्र में निधन

नई दिल्ली / देहरादून / लखनऊ : उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमन्त्री नारायण दत्त तिवारी का निधन दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हुआ. वह 93 साल के थे. एनडी तिवारी बीते एक साल से बीमार चल रहे थे. वह तीन बार उत्तरप्रदेश और एक बार उत्तराखंड के सीएम रहे. वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं. इसके अलावा वह केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. आज ही एनडी तिवारी का जन्मदिन भी था. एनडी तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को हुआ था और संयोगवश उनका निधन  भी 18 अक्टूबर को ही हुआ. वह इकलौते  ऐसे शख्स थे, जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं. डॉक्टरों ने बताया कि एनडी तिवारी का निधन दोपहर दो बजकर 50 मिनट पर हुआ. उन्हें 26 अक्टूबर को अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती कराया गया था. वह बुखार और निमोनिया से पीड़ित थे.वर्ष 2008 में रोहित शेखर ने उन्हें जैविक पिता बताते हुए कोर्ट में मुकदमा कर दिया था. जिस पर कोर्ट ने डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया तो एनडी तिवारी ने अपना नमूना ही नहीं दिया. बाद में कोर्ट के आगे नतमस्तक होते हुए एनडी तिवारी ने जहां रोहित को अपना कानूनी रूप से बेटा मानते हुए संपत्ति का वारिस बनाया, वहीं उज्जवला से 88 साल की उम्र में शादी की. दरअसल उज्जवला से एनडी तिवारी के पुराने प्रेम संबंध रहे, मगर उन्होंने शादी नहीं की थी.

पितृत्व विवाद में फंसने के बाद रोहित शेखर को अपना बेटा मानने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी ने रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा से विधिवत विवाह कर लिया. तिवारी के स्टाफ के एक सदस्य ने नाम उजागर न करने की शर्त पर आज यहां बताया कि 89 वर्षीय तिवारी ने लखनऊ स्थित अपने आवास पर उज्ज्वला से विधिवत विवाह कर लिया. उज्ज्वला रोहित शेखर की मां है, जिन्होंने तिवारी से पितृत्व के दावे को लेकर अदालत की लड़ाई लड़ी थी और उसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी. उसके बाद तिवारी ने रोहित को सार्वजनिक रूप से अपना बेटा मान लिया था. पितृत्व विवाद सुलझने के बाद उज्ज्वला शुरुआती गतिरोध के बाद हाल में तिवारी के लखनउ स्थित घर में रहने लगी थीं.

एनडी तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया. उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टॉप किया था. बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की. 1947 में आजादी के साल ही एनडी तिवारी इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी. आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया.

कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए. यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई. 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे. कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ. 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली. कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली.

1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था. 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे. एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था. 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा. तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने. केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है.

1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई. आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई. बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए, लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा.

वर्ष 2009 में जब एनडी तिवारी आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे, उस दौरान उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे. इस पर काफी किरकिरी होने पर कांग्रेस ने एनडी तिवारी को हाशिए पर डाल दिया. तिवारी इकलौते ऐसे नेता रहे, जिन्हें दो राज्यों का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. यूपी से जहां तीन बार तो उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद से राजनीति में उतरे नारायण दत्त तिवारी ने लंबा राजनीतिक सफर तय किया. उद्योग, वाणिज्य, पेट्रोलियम और वित्त मंत्री रहने के साथ योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे. केंद्र सरकार में लंबी भूमिकाएं निभाईं. वर्ष 1995 में नाराजगी के चलते एनडी तिवारी ने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना ली थी. हालांकि सफल न होने पर दोबारा उन्होंने घर वापसी की.

 

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