नई दिल्ली: दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल केस में बुधवार को दिल्ली सरकार की ओर से पी चिदंबरम ने बहस शुरू की. बहस के दौरान चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उपराज्यपाल ब्रिटिश राज के वक्त के दिल्ली के वायसराय नहीं हैं. वो सिर्फ राष्ट्रपति के एजेंट हैं और उनके पास उतने अधिकार नहीं हैं जितने राष्ट्रपति को हासिल हैं. चिदंबरम ने ये भी कहा कि संविधान एक कानूनी-राजनीतिक दस्तावेज है. देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा इसकी व्याख्या करते वक्त जनभावना और लोकतांत्रिक प्रशासन का भी ख्याल रखना चाहिए. चिदंबरम ने कहा कि 239 AA को अकेल में नहीं देखा जा सकता. इसे GNCT एक्ट के साथ देखा जाना चाहिए. GMCT एक्ट के सेक्शन 44 के तहत उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सिफारिश और सलाह पर ही काम करेंगे. अगर कोई मतभेद होगा तो वो उन्हें दिल्ली सरकार से स्पष्टीकरण मांगना होगा और इसके बाद भी वो संतुष्ट नहीं होते हैं तो वो राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. उपराज्यपाल ना तो फाइल पर बैठे रह सकते हैं और ना ही ऑटोमेटिक तरीके से राष्ट्रपित के पास फाइल भेज सकते हैं.
इससे पहले सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के रोजाना के कामकाज में बाधा नहीं डाल सकते हैं. सरकार और उपराज्यपाल के बीच मतभेद पॉलिसी मैटर में ही हो सकते हैं. मगर ये मतभेद सिर्फ मतभेद के लिए नहीं हो सकते हैं. उपराज्यापाल के पास निहित दखल देने की जिम्मेदारी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं है. वो हर फैसले में ना नहीं कर सकते. वो सिर्फ इसे राष्ट्रपति के पास उनकी राय के लिए भेज सकते हैं. उन्होने कहा कि उपराज्यपाल के प्रशासनिक कार्य संविधान के दायरे में होने चाहिए. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि पॉलिसी मैटर में मंत्रिमंडल की सलाह व सिफारिश उपराज्यपाल के लिए बाध्यकारी नहीं है. नीतिगत फैसले का अधिकार उपराज्यपाल के पास मौजूद हैं.
मुख्य न्यायाधीश ने उदाहरण देते हुए कहा कि सर्दियां आ रही हैं. माना जाए कि दिल्ली सरकार 2000 शेल्टर बनाना चाहती है. वो उपराज्यपाल से सलाह करती हैं तो वो कह सकते हैं कि अभी 500 शेल्टर बनाइये बाकि के लिए राष्ट्रपति के पास फाइल भेजी जाएगी और उनके फैसले के बाद 1500 शेल्टर पर फैसला होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये उस वक्त कहा है जब दिल्ली सरकार की ओर से गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि नीतिगत फैसलों में भी मंत्रिमंडल की सलाह व सिफारिश उपराज्यपाल के लिए बाध्य्कारी हैं. हालांकि, इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अन्य राज्यों के लिए ये कहा जा सकता है लेकिन दिल्ली के लिए ऐसा नहीं है.
हालांकि, गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि वैल्यू ऑफ कैबिनेट के एग्जीक्यूटिव पावर को समझना होगा. अदालत को इसकी मान्यता देनी होगी. दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और वैल्यू ऑफ एगजेकुटिव पावर को समझना होगा. कोर्ट को इसी आलोक में देखना होगा. जो भी केन्द्र शासित प्रदेश है, उसे उपराज्यपाल के जरिये राष्ट्रपति अपना शासन चलाता है. लेकिन दिल्ली का स्पेशल करैक्टर है और यहां विधान सभा बनाया गया है. चुनी हुई सरकार है और यहां मामला स्पेशल करैक्टर का है और उप बंध लगाया गया है ताकि एक कंट्रोल रह सके.