प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष पीठ चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था। इस बीच, उत्तर प्रदेश के सेन्ट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद के समाधान की पेशकश करते हुए न्यायालय से कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है।
हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड के इस हस्तक्षेप का अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध किया। इसका दावा है कि उनके दोनों समुदायों के बीच पहले ही 1946 में इसे मस्जिद घोषित करके इसका न्यायिक फैसला हो चुका है, जिसे छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया गया था। यह सुन्नी समुदाय की है। हाल ही में एक अन्य मानवाधिकार समूह ने इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर की और इस मुद्दे पर विचार का अनुरोध करते हुए कहा कि यह महज संपत्ति का विवाद नहीं है, बल्कि इसके कई अन्य पहलू भी है, जिनके देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने पर दूरगामी असर पड़ेंगे।
शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों के अनुरूप उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन दस्तावेज की अंग्रेजी अनुदित प्रति पेश कर दी हैं, जिन्हें वह अपनी दलीलों का आधार बना सकती है। ये दस्तावेज आठ विभिन्न भाषाओं में हैं। भगवान राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण और सी एस वैद्यनाथन और अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश होंगे और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश होंगे।
अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशील जैन करेंगे। शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि दस सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय में मालिकाना हक संबंधी विवाद में दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद पूरा किया जाए। कोर्ट ने साफ किया था कि वह इस मामले को दीवानी अपीलों से इतर कोई अन्य शक्ल लेने की अनुमति नहीं देगा और हाई कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया ही अपनाएगा।