लखनऊ। ज्येष्ठ माह की चिलचिलाती धूप और तिरालिस डिग्री के तापमान में सड़कों पर आते-जाते राहगीरों के लिये हैण्डपम्प स्वच्छ पेयजल का एकमात्र सहारा होते है जिससे वे अपनी प्यास बुझाते है। परन्तु नगर निगम और स्थानीय पार्षदों की घोर लापरवाही के चलते इण्डियन मार्का हैण्डपम्प तो मुद्दतो से सूखे पड़े है और उन्ही के बगल में लगा दिये गये सबमर्सिबल पम्प की पानी की टकिंयां भी रख-रखाव के अभाव में सूख चुकी है और अब ये सामने से गुजरते प्यासे राहगीरों का मजाक उड़ाती प्रतीत होती है। राजाजीपुरम् क्षेत्र में रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय से लेकर रेलवे अण्डर पास तथा रेलवे अण्डर पास से कोठारी बन्धु तक के दो किलोमीटर से अधिक की दूरी के बीच मात्र एक सबमर्सिबल पानी की टंकी चालू हालत में है वही इस दूरी के बीच पहल करीब पाॅच हैण्डपम्प लगे थे जो कब के सूख चुके है साथ ही दो सबमर्सिबल टकियां सूख चुकी है।
इसी प्रकार कोठारी बन्धु से नाका तक केवल एक ही सबमर्सिबल टंकी है जो ऐशबाग शनि मंदिर के पास है। बीच में कही भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। स्वच्छ पेय जल हैण्डपम्प के पानी को माना जाता है चूंकि हैण्डपम्प सूख चुके है तो मजबूरी में प्यासे राहगीर टंकियों के पानी से अपनी प्यास बुझाता है जबकि इन टकियों की कभी सफाई नहीं होती है। साथ ही आस-पास काफी गंदगी होती है। पूरे राजाजीपुरम् क्षेत्र में पाॅच वार्ड है पेयजल की व्यवस्था की जिम्मेदारी सभासदों के माध्यम से नगर निगम की होती है परन्तु इस मामले में राजाजीपुरम् क्षेत्र काफी पिछड़ा है। क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल का सर्वत्र अभाव है साथ ही राहगीर गन्दी टंकियों के पानी या फिर मंहगे बातलबन्द पानी खरीद कर पीने को मजबूर है।
खराब पड़े हैण्डपम्पों अथवा सबमर्सिबल पम्पों को ठीक कराने के बजाय नये हैण्डपम्प और सबमर्सिबल लगवाने की जुगाड़ में ज्यादा लगे रहते है। राजाजीपुरम् स्थित जल संस्थाने के एक अधिकाराी के अनुसार हैण्डपम्प वायुदाब के सिद्धान्त पर कार्य करता है, तथा यह वायुदाब केवल दस मीटर या तैतीस फीट तक ही कार्य करता है ऐसे में जब भूजल इससे अधिक नीचे चला जाता है तब ये हैण्डपम्प कार्य नहीं करते है। वही राजाजीपुरम् से लेकर नाका क्षेत्र व शहर के अन्य क्षेत्रों में भी अनियोजित तरीके से अनेक स्थानों पर हैण्डपमप के बगल में ही सबमर्सिबल लगा देने से भी पहले से चलते हैण्डपम्प भी सूख गये। पहले जन सेवा करने के लिये लोग और अनेक समाजसेवी संस्थायें गर्मी के दिनों में थोड़ी-थो़डी दूर पर प्याऊ लगवाते थें अब तहजीब के शहर में ये पंरम्परा लगभग समाप्त ही हो गयी है। आज जुबानदार राहगीरों के साथ शहर के बेजुबान और परिंदे भी प्यासें हैं।