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दुश्मनों के होश उड़ाएगा आकाश मिसाइल का नया संस्करण, परीक्षण सफल

पोकरण। सेना एवं रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ)  ने सीमांत जैसलमेर जिले की पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में आकाश मिसाइल के नए संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। सेना के आधिकारिक सू्त्रों ने बताया कि मंगलवार को पोकरण रेंज में एक प्लेटफार्म पर तैनात एक बड़े वाहन से इस मिसाइल को आकाश में दागा गया जो लक्ष्य पर अचूक निशाना साधते हुए दुश्मन के छद्म लक्ष्य को ध्वस्त कर दिया। इस अवसर पर सेना एवं डीआरडीओ के आला अधिकारी मौजूद थे।

इस सफल टेस्ट फायर के बाद सेना की अलटरी की मारक क्षमता और मजबूत होगी। सूत्रों ने बताया कि डीआरडीओ ने आकाश मिसाइल में कुछ तकनीकी बदलाव कर इसे जैसलमेर की पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में परीक्षण के दौरान विभिन्न पैरामीटर पर जांचा परखा गया। इसे आकाश-एनजी यानी नई पीढ़ी की आकाश मिसाइल नाम दिया गया है। यह सतह से हवा में मार करने में सक्षम है। इसे सेना एवं वायुसेना के लिए खासतौर से बनाया गया है।

सीमाओं पर तनाव एवं बढ़ते हवाई खतरों के मद्देनजर आकाश-एनजी कारगर रहेगी। नई आकाश मिसाइल लक्ष्य पाने में अचूक रही। परीक्षण के दौरान यह सारी कसौटियों पर खरी उतरी। मिसाइल का कमांड कंट्रोल सिस्टम, एवियोनिक्स, एरोडायनैमिक सिस्टम सभी ने ठीक ढंग से काम किया।

न्यूक्लियर क्षमता वाली यह मिसाइल 2.5 मैक (यानी करीब 860 मीटर प्रति सेकंड) की रफ्तार से 19 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक उड़ सकती है। फाइटर जेट, ड्रोन, क्रूज़ मिसाइलों और एयर-टू-सरफेस मिसाइलों समेत बैलेस्टिक मिसाइलों को भी ये मिसाइल निशाना बना सकती है और वह भी तीस किमी की दूरी से।

इसके अलावा 3डी रडार (पीईएसए), स्विच होने वाला गाइडेंस एंटीना सिस्टम, डिजिटल ऑटो पायलट, रैमजेट प्रोपल्शन जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ बने इस ​मिसाइल सिस्टम में चार राजेंद्र रडार और चार लॉन्चर हैं जो आपस में जुड़े हैं और ग्रुप कंट्रोल सेंटर से नियंत्रित हो सकते है।

सूत्रों ने बताया कि मिसाइल सिस्टम को डीआरडीओ ने डिज़ाइन और विकसित किया है, वहीं इसका उत्पादन भारत डायनामिक्स ने किया है और इसके हाई टेक राजेंद्र फेज़्ड ऐरै रडार का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स ने किया है। आकाश प्रक्षेपास्त्र भारत द्वारा स्वदेशीय निर्मित, माध्यम दूर की सतह से हवा में मार करने वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है। इसे डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। इस मिसाइल के 96 प्रतिशत तक सिस्‍टम पूरी तरह से देश में तैयार हैं।

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