ग्रेटर नोएडा। डिफॉल्टर आम्रपाली एक भ्रष्ट व्यवस्था का पोल खोलता है, जिसमें प्राधिकरण और बैंक के उन नियमों को दिखाता है जिसमें आम लोगों के लिए बेहद ही खास नियम बनाए जाते हैं,लेकिन आम्रपाली जैसी समूह के लिए बेहद सरल प्रक्रिया होता है, जिसके माध्यम से प्राधिकरण और बैंक के भ्रष्ट अधिकारी अपनी जेब भरते हैं और कथित समूह को भी उनके अनुरूप मनमानी से कार्य करने की आजादी प्रदान करते हैं। बिल्डर को बैंकों से कर्ज लेने के लिए मोर्टगेज परमिशन देने में भी प्राधिकरण ने नियमों की अनदेखी की। इसका हश्र यह हुआ कि प्राधिकरण के 3600 करोड़ के साथ ही बैंकों के भी 1500 करोड़ रुपये डूब रहे हैं। दरअसल, आम्रपाली ने 2010 में सिर्फ 10 फीसदी रकम (377 करोड़ रुपये) देकर करीब 306 एकड़ जमीन आवंटित करा ली थी।
उसके बाद आम्रपाली की पहली किस्त से ही दिक्कत सामने आने लगी। उसने खरीदारों से मिलने वाली रकम न तो प्रोजेक्ट पूरा करने में लगाई और न ही प्राधिकरण की बकाया किस्त को जमा किया। उल्टे बैंक कर्ज के लिए कई बार प्राधिकरण से मोर्टगेज परमिशन भी लेता रहा, जबकि नियम यह है कि अगर कोई बिल्डर डिफॉल्टर हो जाता है तो उसे तब तक मोर्टगेज परमिशन प्राधिकरण नहीं देता है जब तक उसकी डिफॉल्ट किस्त नहीं आ जाती। यह भी प्रावधान है कि अगर मोर्टगेज परमिशन दे भी दी,
तो बैंकों से मिले लोन में से प्राधिकरण का पैसा चुकाना पड़ता है, जबकि आम्रपाली ने यह नहीं किया। उल्टे एक ही प्रॉपर्टी पर एक से अधिक बैंकों से कर्ज ले लिया। प्राधिकरण के साथ ही बैंक भी आम्रपाली पर मेहरबानी करने में पीछे नहीं रहे और एक बैंक के पास संपत्ति गिरवी होने के बावजूद दूसरे बैंक कर्ज देते रहे। सुप्रीम कोर्ट में खरीदारों की तरफ से केस लड़ रहे नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ऑनर्स वेलफेयर एसोसिएशन (नेफोवा) के अध्यक्ष अभिषेक कुमार के मुताबिक, आम्रपाली ने करीब 1500 करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों से ले रखा है। अब मुख्यमंत्री की फटकार के बाद प्राधिकरण मोर्टगेज परमिशन देने में लापरवाही की रिपोर्ट तैयार करा रहा है। रिपोर्ट आने पर दोषी प्राधिकरण कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।