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जानिये कब शुरू होगा सावन मास, शिव के किस पूजन से पूरी होगी मनोकामनाएं और क्या है महत्व ?

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सावन मास भगवान भोलेनाथ को प्रिय है और इसमें शिवलिंग को गंगा जल से जलाभिषेक करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मान्यता है कि सावन मास में भगवान शिव का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से उन्हें शीतलता मिलती है और वे प्रसन्न होते हैं। इस दौरान भोले के भक्त कांवड़ यात्रा, रुद्राभिषेक, जप-तप के जरिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के वह सभी उपाय करेंगे जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
सावन में शिव पूजन का महत्व
भोले शिव के पांच मुख है। पश्चिम का मुख सद्योेजात, उत्तर का मुख बामदेव, पूर्व का मुख ततपुरुष, दक्षिण का मुख अघोर तथा ऊपर का मुख ईशान। इस प्रकार पांच सोमवार को इन पांच मुखों की पूजा अर्चना करें। इससे शिवजी की संपूर्ण पूजा करने का भक्तों को अवसर मिलेगा। शिव पूजा के साथ—साथ शिव परिवार (प्रथम पूज्य श्री गणेश, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी, नाग देवता) का भी पूजन करें।
कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा
मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे, जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वह अपने साथ गंगाजल ले गए। इसे कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
ऐसे करें शिव पूजन
मान्यता है कि भोले भंडारी भगवान शिव एक लोटा पवित्र जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि कोई व्यक्ति शिवजी की कृपा प्राप्त करना चाहता है तो न सिर्फ सावन मास में बल्कि उसे प्रतिदिन शिवलिंग पर स्नान के बाद जल अर्पित करना चाहिए। विशेष रूप से सावन के हर सोमवार शिवजी का पूजन करें। सावन के सामवार के दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शिवजी के मंदिर या घर में ही भगवान महादेव के सामने व्रत का संकल्प लें।इस व्रत में एक समय रात्रि में भोजन चाहिए। दिन फलाहार किया जा सकता है। साथ ही दूध का सेवन भी किया जा सकता है।
संकल्प के बाद शिवलिंग पर जल अर्पित करें। गाय का दूध अर्पित करें। इसके बाद पुष्प हार और चावल, कुमकुम, बिल्व पत्र, मिठाई आदि सामग्री चढ़ाएं। यदि आप सावन के सोमवार के दिन निर्जल व्रत नहीं रख सकते तो फलाहर व्रत करें। शिव पुराण का पाठ करें या फिर सुनें। शिव पुराण में बताया गया है कि सावन में इसका पाठ और श्रवण मुक्तिदायी होता है।
सावन के सोमवार में शिव पूजन का महत्व
सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए जाना जाता है। ऐसे में श्रावण मास में इस का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। जो लोग भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत साल भर नहीं कर पाते हैं, वे सावन के प्रत्येक सोमवार को व्रत कर सकते हैं। उन्हें उतना ही लाभ मिलेगा जितना साल भर के प्रदोष व्रत करने से मिलता है। सावन मास में प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा का भी विशेष महत्व है, ऐसे में इस समय भगवान शिव का पूजन, अर्चन एवं मंत्र जप का अत्यधिक महत्व मिलता है।
इस महामंत्र से करें महादेव का जाप
सावन के महीने में भगवान शिव के मंत्र जप का विशेष फल है। जिसे प्रदोष काल में जपना चाहिए।
1. ॐ नम: शिवाय।
2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
भगवान शिव के किसी भी मंत्र का जप कम से कम एक माला अर्थात् 108 बार अवश्य जपें। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग सर्वश्रेष्ठ रहता है।
भूलकर भी न करें ये काम
– सावन के महीने में शिव भक्तों को कभी भी भूलकर मांस-मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
– इस पूरे मास ब्रह्मचर्य व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।
– सावन के महीने में व्रत करने वाले को बैंगन, हरी सब्जियां और साग के सेवन नहीं करना चाहिए।
– सावन मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और न ही कांसे के बर्तन में खाना-खाना चाहिए।
– भगवान शिव की पूजा के समय में शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं।
– सावन के महीने में दिन के समय भूलकर नहीं सोएं।
– यदि रास्ते में कहीं शिव की सवारी नंदी या फिर कहे सांड़ मिल जाए तो उसे मारे नहीं। यदि संभव हो तो उसे कुछ खाने को दें।
– सावन के महीने में कांवड़ यात्रा में निकले शिव भक्तों का अपमान न करें। यथासंभव उनकी सेवा करें।
– शिव की भक्ति में लीन भक्तों को भी पूजन या कांवड़ यात्रा के दौरान क्रोध नहीं करना चाहिए।
इस ज्योतिषीय उपाय से दूर होंगी बाधाएं
श्रावण मास में भगवान शिव एवं पार्वती से जुड़े कई ऐसे ज्योतिषीय उपाय हैं जिन्हें करके जीवन से जुड़ी बाधाओं को दूर किया जा सकता है और मनोवांछित फलों की प्राप्ति की जा सकती है। जैसे यदि किसी के दांपत्य जीवन में दिक्कतें आ रही हैं या फिर किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा है, उसे सावन में मंगला गौरी के साथ पूजन करना चाहिए। सावन मास में रुद्राभिषेक करने से न सिर्फ मनोकामनाएं पूर्ण होगी बल्कि इससे कालसर्पदोष, राहु—केतु जनित समस्याओं आदि से भी मुक्ति मिलती है। दांपत्य जीवन में कलह को दूर करने और शीघ्र विवाह के लिए श्रावण मास के मंगलवार के दिन मंगला गौरी का पूजन करें। 16-16 वस्तुएं भगवती को अर्पण करें। ऐसा करने से गलतफहमियां दूर होंगी, रिश्तों में सुधार होगा। लड़कियों को मनवांछित फल प्राप्त होगा।

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