बेगूसराय: लोकसभा चुनाव 2019 में देश की जो लोकसभा सीटें सुर्खियों में हैं उनमें से एक बिहार की बेगूसराय सीट भी है। बेगूसराय क्षेत्र से सीपीआई के पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार और भाजपा के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चुनावी मैदान में हैं। माना जा रहा है कि यहां कड़ा मुकाबला भाजपा और सीपीआई के बीच है। लेकिन राजद की ओर से यहां से चुनाव लड़ रहे तनवीर हसन बेगूसराय के दिग्गज नेता रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के भोला सिंह और तनवीर हसन के बीच कड़ी टक्कर थी, जिसमे भाजपा ने बाजी मार ली थी। बेगूसराय में कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों कि कोशिश भूमिहार जाति के मतदाताओं को अपने पाले में खींचना है।
ये दोनों ही प्रत्याशी भूमिहार जाति से आते हैं। बेगूसराय के 19 लाख वोटरों में से ऊंची जाति के भूमिहारों की संख्या लगभग 19 फीसदी है, वहीं, दूसरे नंबर पर 15 फीसदी मतदाता मुसलमान हैं। 12 फीसदी यादव और 7 फीसदी कुर्मी जाति के मतदाता हैं। नीतीश की पार्टी का साथ मिलने के बाद बीजेपी को पूरा भरोसा था कि वो भूमिहार, ऊंची जाति और कुर्मी जाति के वोटरों के मिलाकर करीब 37 फीसदी वोटों पर कब्जा कर लेगी। लेकिन कन्हैया कुमार के यहां से चुनाव लड़ने की वजह से भाजपा के भूमिहार और पिछड़े वर्ग वोटरों में सेंध लगने के आसार मालूम पड़ते हैं। बेगूसराय का चुनावी खेल देशप्रेमी बनाम देशद्रोही के चौसर पर खेला जा रहा है। कन्हैया को भाजपा सरकार ने देशद्रोही के रंग में दिया था।
दूसरी ओर गिरिराज सिंह ऐसे नेता हैं जो भाजपा के विचारों से मेल नहीं खाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेंजने की बात करते रहते हैं। देखना होगा कि आखिर क्या कन्हैया कुमार अपने विरोधियों के द्वारा गढ़ी गई देशद्रोही की छवि को इस चुनाव में उतार पाएंगे या गिरिराज का राष्ट्रप्रेम बाजी मार लेगा।बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र की 7 विधानसभा सीटों में से एक भी बीजेपी के पास नहीं है। 2 जेडीयू के खाते में है, वह भी 2015 में बीजेपी विरोधी गठबंधन के नाते मिली हैं। इस चुनावी पूरे दौर में आरजेडी पूरी तरह से शांत रहा जिससे मुसलिम+यादव बहुल क्षेत्रों में भी कन्हैया की पहुंच हुई है। लेकिन कहा जा रहा है कि गिरिराज और भाजपा के पास बूथ प्रबंधन की वो क्षमता है कि वो कभी भी बाजी को पलट सकते हैं।
कन्हैया की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभिनेता प्रकाश राज और गीतकार जावेद अखतर जैसी हस्तियां उनके समर्थन में प्रचार किया है। इससे यह छवि बनी है कि वह राजद के प्रतयाशी तनवीर हसन की तुलना में भाजपा के लिए बेहतर चुनौती हैं। लेकिन कन्हैया की छवि देश में जैसी भी हो उन्हें बेगूसराय की जनता में एक नेता के तौर पर अपनी छवि गढ़नी है। जो वहां के जनता के मुद्दें को संसद तक ले जा सके। गिरिराज सिंह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। वो सियासी गणित को कन्हैया से बेहतर समझते हैं। वो जानते हैं कि बिहार में विकास से ज्यादा जाति का मुद्दा हावी रहेगा। दूसरी ओर, सीपीआई जाति के आधार पर वोट बटोरने में कभी सफल नहीं रही है। देखना है मतदान के बाद बेगूसराय किसे अपनाता है।