शिमला: हिमाचल के बेरोजगार युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए आरंभ की मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना बैंकों के चक्रव्यूह में फंस गई है। साल 2018-19 में योजना के तहत आए 803 आवेदनों में से 788 लाख के सिर्फ 36 आवेदनों को ही मंजूरी मिली है। बुधवार को शिमला में राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की 151वीं बैठक में यह खुलासा हुआ। बताया गया कि 2956 लाख की सब्सिडी के 689 आवेदन बैंकों में ही लंबित हैं। प्रदेश सरकार ने योजना के तहत साल 2018-19 में 80 करोड़ बजट का प्रावधान रखा है, जिसमें अभी केवल 1.34 करोड़ ही खर्च हो पाए हैं।
बेरोजगारों को स्वावलंबी बनाने के लिए जयराम सरकार ने मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना शुरू की है। इसमें नया उद्योग स्थापित करने के लिए 40 लाख के ऋण पर 25 फीसदी (महिलाओं को 30 फीसदी) सब्सिडी का प्रावधान है। तीन साल तक ब्याज पर भी 5 फीसदी तक छूट दी गई है लेकिन बैंकों की जटिल औपचारिकताओं के चलते पात्र युवा इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। मुख्य सचिव बीके अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में बताया गया कि गाइड लाइन की अनदेखी करते हुए बैंक प्रबंधन ऋण लेने के लिए आए युवाओं को अतिरिक्त औपचारिकताओं में उलझा रहे हैं।
प्रोसेसिंग फीस अधिक होने के चलते युवा योजना को लेकर हतोत्साहित हो रहे हैं। सहकारी बैंक योजना के तहत ऋण देने के लिए पात्र नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के युवा आवेदन भी नहीं कर पा रहे हैं। मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना का पात्र लोगों को लाभ न मिलना चिंता विषय है। योजना सुचारु तौर पर चलाने के लिए बैंकों के साथ उद्योग विभाग के अधिकारी नियमित तौर पर बैठक करेंगे। बैंकों से संबंधित समस्याओं को रिजर्व बैंक इंडिया के समक्ष प्रदेश सरकार उठाएगी। अगर बैंक भी योजना के तहत कुछ बदलाव चाहते हैं तो उनके सुझावों पर मंथन किया जाएगा।