जम्मू: देश में लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों की तिथियों का निर्णय तो निस्संदेह चुनाव आयोग ही लेता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में केंद्र सरकार एवं राज्य प्रशासन द्वारा सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए चुनाव को स्थगित भी करवाया जा सकता है। अनंतनाग-पुलवामा लोकसभा उपचुनाव इसका ताजा उदाहरण है। ऐसे में, भाजपा भी केंद्र में सत्तारूढ़ होने एवं राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने का लाभ उठाकर जम्मू-कश्मीर में अपनी सुविधानुसार चुनावों का समय निर्धारित करवाने की जुगत में है, लेकिन इस मुहिम को पार्टी के अंदर से ही चुनौती मिल रही है, क्योंकि प्रदेश भाजपा के नेताओं के बीच ही लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने को लेकर भारी मतभेद हैं। सूत्रों के अनुसार हाल ही में जम्मू में आयोजित भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं की बैठक में जब यह मुद्दा आया कि भाजपा को लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ होने की स्थिति में ज्यादा लाभ मिलेगा अथवा अलग-अलग चुनाव होने पर पार्टी के उम्मीदवार फायदे में रहेंगे तो भाजपा नेताओं के बीच मतभेद देखने को मिले।
पिछले दिनों हुए स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की जीत से उत्साहित शहरी नेता जहां दोनों चुनाव एक साथ करवाने की वकालत कर रहे थे, वहीं कुछ वरिष्ठ नेता इसके पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि यदि राज्य में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो केंद्रीय नेतृत्व जम्मू-कश्मीर पर बारीकी से ध्यान नहीं दे पाएगा और विभिन्न स्तर पर खामियां रह जाने से भाजपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाएंगे, जबकि अलग-अलग चुनाव होने की स्थिति में केंद्रीय नेता एक-एक बूथ तक की स्थिति पर नजर रख सकते हैं। ऐसे में, पार्टी ज्यादा सीटों पर विजय हासिल करने की स्थिति में होगी। आजादी के बाद 2014 तक भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में सत्ता का स्वाद नहीं चखा था, लेकिन अब यह स्वाद पार्टी नेताओं की जीभ से छूटने का नाम नहीं ले रहा है। यही कारण है कि विधानसभा भंग होने तक पार्टी के नेता केवल 2 विधायकों वाली पीपल्स कांफ्रैंस के नेतृत्व में भी सरकार बनाने के लिए तैयार हो गए थे। यह बात अलग है कि पी.डी.पी., नैशनल कांफ्रैंस एवं कांग्रेस के एक दिवसीय महागठबंधन ने दबाव बनाया और राज्यपाल ने राज्य विधानसभा भंग कर दी।
दिलचस्प बात यह है कि विधानसभा भंग होते ही जहां पी.डी.पी., नैशनल कांफ्रैंस एवं कांग्रेस के रास्ते अलग हो गए, वहीं पीपल्स कांफ्रैंस भी भाजपा के साथ खड़ी होने को तैयार नहीं है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पार्टी द्वारा जम्मू-कश्मीर में जो आतंरिक सर्वेक्षण करवाया जा रहा है, उसके रूझान के अनुसार भाजपा को राज्य में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव अलग-अलग करवाने से ज्यादा फायदा होगा। बेशक स्थानीय चुनाव, स्थानीय मुद्दों पर हुए हैं, लेकिन पार्टी चुनाव चिन्ह पर होने के कारण शहरी निकायों में तो भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है, लेकिन पार्टी आधारित न होने के कारण पंचायत चुनावों में स्थिति धुंधली है। वैसे भी भाजपा के पूर्व मंत्रियों एवं विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में, यदि एक साथ चुनाव करवाए गए तो पार्टी अपेक्षित सीटें हासिल नहीं कर पाएगी, जबकि 2014 में अलग-अलग चुनाव होने पर भाजपा ने पहली बार 25 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने के प्रति बहुत पहले ही अपना ध्येय व्यक्त कर चुके हैं, इसलिए भाजपा के वरिष्ठ नेता इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि यदि अपने चुनावी फायदे के लिए भाजपा ही अलग-अलग चुनाव करवाने की पक्षधर बनी तो प्रधानमंत्री के उस ध्येय का क्या होगा। वैसे भी राज्यपाल पहले ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग कर चुके हैं, इसलिए राज्य में विधानसभा चुनाव टालने का अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
पिछली सरकार में भाजपा ने पीपल्स कांफ्रैंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन और विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में शामिल हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद चै. लाल सिंह को अपने कोटे से कैबिनेट मंत्री बनाया था, लेकिन आज स्थिति यह है कि ये दोनों वरिष्ठ नेता अपने अलग राह पकड़ चुके हैं। संभव है कि पीपल्स कांफ्रैंस चेयरमैन ने तो भाजपा हाईकमान के साथ अंडरस्टैंडिंग करके धारा 370 और 35-ए जैसे मुद्दों पर कश्मीरी जनता को लुभाने के लिए अलग राह चुनने की घोषणा की हो, लेकिन चै. लाल सिंह की चुनौती निश्चित तौर पर चिंतनीय है। हालांकि, उन्होंने अभी तक चुनाव मैदान में उतरने की औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन जिस प्रकार उन्होंने जम्मू संभाग के तमाम इलाकों में डोगरा स्वाभिमान संगठन की इकाइयां तैयार की हैं, वह अपने आप में चुनावी राजनीतिक की तरफ इशारा करता है। जमीनी हकीकत है कि अब तक 23 विधानसभा क्षेत्रों में डोगरा स्वाभिमान संगठन अपना आधार स्थापित कर चुका है। कांग्रेस एवं अन्य दलों को तो चै. लाल सिंह का जो नुक्सान होना था, वह पिछले चुनाव में हो चुका है, लेकिन इस बार यदि उन्होंने चुनौती पेश की तो भाजपा को सीधे तौर पर नुक्सान होगा। ऐसे में, यदि राज्य में अलग-अलग चुनाव होते हैं तो विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास ऐसी चुनौतियों से निपटने का पर्याप्त समय होगा।